संत कबीर का हिंदी साहित्य के क्षेत्र में योगदान

Pages:34-35
निर्मल कुमारी (इनडीपेंडेंट स्कोलर, हिन्दी, टोहाना, फतेहाबाद, हरियाणा)

जिस प्रकार हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल में संत साहित्य का विशेष महत्व है ठीक वैसे ही भक्तिकाल में संत साहित्य में सर्वोपरी स्थान पर विराजमान हैं – संत कबीर। कबीर का जन्म 1398 ई0 में और देहावसान 1518 ई0 में माना है। कबीर की पत्नी का नाम लोई था। उनके पुत्र का नाम कमाल व पुत्री का नाम कमाली था। कबीर का जन्म, जीवन, परिवार, शिक्षा, दीक्षा, धर्म आदि सब कुछ विवादित रहा है। कबीर निराकारीवादी हैं। निराकार की प्राप्ति ज्ञान से संभव है। वह घट में बसता है, उसे बाहर खोजने की आवश्यकता नहीं है। उनका कहना है – ‘‘ हिरदै सरोवर है अविनासी।’’ कबीर ने बार-बार राम शब्द का प्रयोग कयिा है, किंतु उनका राम सगुण न होकर परम ब्रह्म का प्रतीक है। कबीर राम को पुकारने की आवश्यकता निश्चित रूप से महसूस करते हैं, इसलिए उन्हें कोई न कोई नाम भी देना ही पड़ता है। उनके ही शब्दों में

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निर्मल कुमारी (इनडीपेंडेंट स्कोलर, हिन्दी, टोहाना, फतेहाबाद, हरियाणा)