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वर्तमान शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में श्री मद्भगवद्गीता

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Pages:47-49
नेहा बिश्नोई (शिक्षा विद्यालय, केन्द्रीय महाविद्यालय, महेन्द्रगढ़, हरियाणा)

मनुष्य जीवन के प्रारम्भ से लेकर अंत तक की कल्पना का गाथा का संपूर्ण सार श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है। जन्म से पहले, माँ के गर्भ से ही मनुष्य ज्ञान ग्रहण करने की अवस्था में होता हैं वह माँ के गर्भ में पलते हुए भी अच्छी व बुरी भावनाओं को महसूस कर सकता है। जीवन की यात्रा में अच्छे व बुरे हर प्रकार के अनुभवों से मनुष्य को गुजरना होता है। नैतिकता का पाठ पढ़ते हुए उसे यह जीवन यात्रा पूरी करने में किसी प्रकार की समस्या से जूझना पड़े तो भी वह आसानी से उसका हल निकाल लेता है। श्री मद्भगवद् गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह उपदेश दिया है कि ‘कर्म करते चलो, फल की चिंता मत करो।’ नैतिक मूल्य ही मनुष्य के पूर्ण विकास का सिद्धान्त है। नैतिक मूल्यों के बिना मनुष्य, समाज का भला नहीं हो सकता। और श्री मद्भगवद्गीता में यही पाठ पढ़ाया गया हैं। श्री मद्भगवद्गीता में बताया गया है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल मनुष्य के आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाना ही नहीं बल्कि सामाजिक, आध्यात्मिक, नैतिक तथा भावनात्मक मूल्यों को मजबूत बनाना भी है। आज समाज में बहुत सी अनैतिक घटनाएं घट रही है। अध्यापक तथा विद्यार्थी के संबंध भी अपना विश्वास खोते जा रहे हैं। गुरू शिष्य परम्परा खत्म होती जा रही है। मनुष्य के अपने समाज में ही मानवीय मूल्य खत्म होते जा रहे हैं। इसलिए आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षा के स्तर को देखते हुए पुरानी शिक्षा प्रणाली, गुरू-शिष्य परम्परा, गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को फिर से शुरू किया जाना चाहिए। प्राचीन शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य ‘जीवन की पूर्णता के लिए तैयारी’ था। मानवीय मूल्यों का पतन हो रहा है। आधुनिकीकरण, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, निजीकरण, भौगोलिकीकरण तथा पाश्चात्य सभ्यता के कारण भारत देश में भारतीय शिक्षा प्रणाली में नीतिगत मूल्यों का पतन हो गया है। इस शिक्षा प्रणाली में दुनिया में विकास की गति को तेज तो कर दिया है, लेकिन इस विकास ने ही हमें नैतिक मूल्यों, मानवीय मूल्यों से अलग कर दिया है। आजकल की भाग दौड़ भरी जिन्दगी में मनुष्य के पास अपने परिवारजनों के पास बैठने, बुजुर्गो की ज्ञान भरी बातें सुनने व समझने का समय ही नहीं है। सभी में पैसा कमाने की होड़ मची है। कुछ प्रश्न आज भी अनसुलझे हैं चाहे विज्ञान ने कितनी भी तरक्की करली है जैसे मनुष्य कौन हैं? कहां से आया हैं? मृत्यु के पश्चात् मनुष्य जीवन की कल्पना संभव है।

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Pages:47-49
नेहा बिश्नोई (शिक्षा विद्यालय, केन्द्रीय महाविद्यालय, महेन्द्रगढ़, हरियाणा)