आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण संरक्षण

Pages:42-44
मुन्नी (गुरू जम्भेश्वर धार्मिक अध्ययन संस्थान गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार)

पर्यावरण शब्द ‘परि’ उपसर्ग के साथ ‘आवरण’ शब्द के संयोग से बना है। परि का अर्थ है … चारो ओर, इर्द-गिर्द या परिधि आदि। पर्यावरण के अंतर्गत वह सब कुछ आता है जो पृथ्वी पर और उसके चारो और दृश्य एवं अदृश्य रूप में विद्यमान है। हमारे चारो और का आवरण अर्थात हमारा भौतिक एवं सामाजिक परिवेश जिससे समस्त जैविक एवं अजैविक घटक प्रभावित होते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पर्यावरण का निर्माण उन सभी जैविक एवं अजैविक घटकों से हुआ है जो इस पृथ्वी और इसके चारो और उपलब्ध है पर्यावरण के अन्तर्गत आते हैं। पर्यावरण प्रकृति की भांति एक व्यापक शब्द है। जीवन से जुड़ा हुआ यह शब्द मनुष्य के भौतिक सामाजिक, आर्थिक और सांस्कतिक विकास का अपना विपुल प्रभाव रखता है। पर्यावरण का संकट प्राणी के जीवन का संकट है इसके संतुलित विकास पर मनुष्य की उन्नति आधारित है। इसलिए इसकी परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है कि हमारे चारों और व्याप्त परिवेश ही पर्यावरण है। इस परिवेश में जल स्त्रोत, पोखर, चारगाह, पर्वत, कन्दराएं, पशु, पक्षी, धरती, वायु, वृक्ष, लताएं आदि सभी सम्मिलित किये जाते हैं। जिससे मनुष्य का जीवन प्रभावित होता है। पर्यावरण एक ऐसा विशिष्ट वातावरण है जिससे मनुष्य गतिशील होता है। जिसमें वह श्वास लेता है तथा स्वस्थ रहकर अपने भविष्य का निर्माण करता है। विज्ञान ने मनुष्य को कई सुविधाऐं भी दी है। इन समस्याओं का मुख्य कारण रहा है – अविवेकपूर्ण, असंतुलित औद्योगिक विकास इस अंधाधुंध औद्योगिक विकास का दुष्परिणाम यह हुआ है कि हमारा समूचा परिवेश जीवन-घातक तत्वों से भर गया है। आज न तो सांस लेने के लिए शुद्ध वायु ही रह गई है।

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मुन्नी (गुरू जम्भेश्वर धार्मिक अध्ययन संस्थान गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार)