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निराला की सामाजिक चेतना
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Page: 04-06
सुषमा (हिंदी विभाग, राजकीय महाविद्यालय, हिसार, हरियाणा)
भक्तिकाल के बाद अगर किसी लोकप्रिय काल का नाम ले तो वो छायावाद है क्योंकि कितनी विचारों और तर्कों तथा गहनता तथा विविधता भक्ति काल में दिखाई पडता है उतनी ही छायावाद में भी छायावाद में चार महत्वपूर्ण कवि आते है। जिन्हे हम छायावाद का आधार स्तम्भ भी कह सकते हैं। जिनमें जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला तथा महादेवी वर्मा का नाम आता हैं। पंत, प्रसाद तथा महादेवी वर्मा में छायावाद की रोमांचियता दिखाई देती है, किन्तु निराला के काव्य में व्यक्तिगत संघर्शों के अनुभव उनके लेखन में एक नई लोक या सामाजिक चेतना का आविर्भाव करते है। निराला के काव्य व्यक्तिगत संघर्शों से सामाजिक संघर्ष की ओर अग्रसर होता हैं। क्योंकि उनके जीवन में पीडा तथा बेदना तथा तकलीफों का समागम रहा है उन्होनें छोटी उम्र में अपने माता-पिता को खो दिया था माता-पिता के बिना किसी बच्चे का बचपन, कितनी मुसीबतों से कटता है इसका अनुभव उन्हें था। इसके बाद उनकी पत्नी बाद में अल्पायु में ही बेटी के निधन से वे बिलकुल टूट जाते है तथा इसी पीडा और संघर्ष को हम उनके पहले व्यक्तिगत रूप में बाद में लोक चेतना के रूप में बदलता देखते है। इसका सबसे सुन्दर उदाहरण हैं राम सी शक्ति पूजा कविता में किसी प्रकार राम का व्यक्तिगत संघर्ष सामाजिक संघर्ष का रूप धारण कर लेता है।
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सुषमा (हिंदी विभाग, राजकीय महाविद्यालय, हिसार, हरियाणा)