कश्मीर और अनुच्छेद 370 एक ऐतिहासिक और संवैधानिक दृष्टिकोण
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Page: 459-463
सुरेन्द्र कुमार एव शैलेंद्र कुमार सिंह (राजनीति विभाग, ओम स्ट्र्लिंग ग्लोबल विश्वविधालय, हिसार, हरियाणा)
Description
Page: 459-463
सुरेन्द्र कुमार एव शैलेंद्र कुमार सिंह (राजनीति विभाग, ओम स्ट्र्लिंग ग्लोबल विश्वविधालय, हिसार, हरियाणा)
यह शोधपत्र अनुच्छेद 370 के ऐतिहासिक और संवैधानिक आयामों तथा जम्मू और कश्मीर पर इसके प्रभावों का विश्लेषण करता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता था, जो रक्षा, विदेश मामले, वित्त और संचार को छोड़कर सभी मामलों में इसे स्वायत्तता प्रदान करता था। यह प्रावधान 1947 में हस्ताक्षरित विलय पत्र पर आधारित था, जिसने भारत के साथ राज्य के अद्वितीय संबंध को परिभाषित किया1। हालांकि, यह विशेष दर्जा दशकों तक राजनीतिक और कानूनी विवाद का विषय बना रहा। 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया, जिससे संवैधानिक और राजनीतिक स्तर पर बड़े बदलाव हुए, जिसमें राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करना भी शामिल था। यह शोधपत्र अनुच्छेद 370 के ऐतिहासिक विकास, संघवाद और शासन पर इसके प्रभाव तथा इसके हटाए जाने के व्यापक सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन करता है। यह अध्ययन इस कदम से संबंधित कानूनी चुनौतियों और बहसों का भी आलोचनात्मक विश्लेषण करता है तथा क्षेत्र के भारत में समेकन के परिणामों पर प्रकाश डालता है।