उत्तररामचरितम् में प्रयुक्त कृदन्त क्रियारूप: एक विवेचन
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Pages:80-81
नीलम रानी (मकड़ाना, भिवानी, हरियाणा)
‘उत्तररामचरितम्’ महाकवि भवभूति द्वारा रचित संस्कृत साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कृत्तियों में से एक है। यहाँ प्रस्तुत शोध-पत्रा में ‘उत्तररामचरितम्’ में प्रयुक्त कृदन्त क्रियारूपों के सम्बन्ध में विस्तार से विचार किया जा रहा है। संस्कृत भाषा के क्रियारूपों को दो वर्गो में विभक्त किया जा सकता है। तिड़न्त क्रियारूप तथा कृदन्त क्रियारूप। ये दोनों प्रकार के क्रियारूप दो सार्थक इकाईयों के योग से निष्पन्न होते है। संस्कृत भाषा में क्रिया के रूप में प्रयोग में लाये जाने वाले दूसरे प्रकार के क्रिया पदों को कृदन्त कहते है। धतु मेें जिस प्रत्यय को जोड़कर संज्ञा, विशेषण अथवा अव्यय बनता है, उसको कृत प्रत्यय कहते है और इसके द्वारा जो शब्द सिद्ध होता है उसको कृदन्त कहते है। इनका प्रयोग काल, लिंग वचन तथा वाच्य के अनुसार होता है। विशेषण क्रियापदों के इन रूपों का वर्गीकरण निम्न आधर पर किया जाता हैः-
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Pages:80-81
नीलम रानी (मकड़ाना, भिवानी, हरियाणा)