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हिन्दी के आधुनिक महाकाव्यः एक दृष्टि
Pages:315-316
वर्षा देवी (राजेन्द्र सेठ कालोनी, कैथल, हरियाणा)
हिन्दी का आधुनिक काल संवत् 1900 से अब तक माना जाता है। महाकाव्य रचना की दृष्टि से यह काल पर्याप्त समृद्ध रहा है। इस काल को विद्वानों ने चार युगों में विभाजित किया है- भारतेन्दु-युग, द्विवेदी-युग, छायावाद-युग और छायावादोत्तर-युग। भारतेन्द्र -युग पुनरुत्थान का काल था। इस युग में कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी तथा निबन्ध आदि विविध क्षेत्रों में साहित्य का विकास हुआ। परन्तु, यह आश्चर्य की बात है कि इस युग में किसी महाकाव्य का सृजन नहीं हो सका। इसके मूल में तीन मुख्य कारण हैं- प्रथम, यह युग परिवर्तन और संघर्ष का था तथा महाकाव्यों की रचना शान्ति-काल में ही सम्भव हो सकती थी। दूसरे, केवल भारतेन्दु जी ही एक मात्र अपने युग के प्रतिभा-सम्पन्न कवि थे, जिनसे महाकाव्य रचने की आशा की जा सकती थी। किन्तु, वे इतने अल्पकाल जीवित रहे कि यह कार्य उनसे अपूर्ण ही रह गया। तीसरे, इस युग में महाकाव्योचित भाषा का स्वरूप अनिश्चितता के क्षेत्र में अंगड़ाइयाँ ले रहा था। बृजभाषा और खड़ी बोली में से किसको महाकाव्य के लिए उपयुक्त भाषा ठहराया जाये, यह प्रश्न विद्वानों के लिए अभी विचारणीय था। अतः भारतेन्दु-युग में कोई महाकाव्य नहीं रचा गया। इस अभाव की पूर्ति द्विवेदी-युग में सम्भव हो सकी। महावीर प्रसाद द्विवेदी से प्रेरणा ग्रहण कर अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ के ‘प्रियप्रवास’ और मैथिलीशरण गुप्त के ‘साकेत’ महाकाव्य का प्रणयन इसी काल में हुआ। छायावाद-युग और छायावादोत्तर-युग तक आते-आते तो अनेक महाकाव्य रचे गये, जो अपनी नवीनता में स्वयं प्रमाण हैं।
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Pages:315-316
वर्षा देवी (राजेन्द्र सेठ कालोनी, कैथल, हरियाणा)