हरियाणा के कन्या विवाह-संस्कार सम्बन्धी लोक गीतों का सांस्कृतिक अध्ययन

Pages:81-83
योगमाया भारद्वाज (प्रवक्ता, राजकीय कन्या महाविद्यालय, बवानी खेड़ा, भिवानी, हरियाणा)

लोकगीत लोक साहित्य का ही पद्यबद्ध रूप है। यह अग्र्रेजीं के थ्वसा ैवदह का पर्याय है। लोक साहित्य में लोकगीतों की विशेष भूमिका होती हैं यह लोकगीत अपने समय तथा परिवेश का प्रतिबिम्ब तो होते ही हैं साथ ही मानवीय संवेदनाओं व भावनाओं की भी नैसंर्गिक अभिव्यक्ति होते हैं। समाज में संस्कार गीतो की एक समृृृृृृृृृृद्ध परम्परा होती हैं। हरियाणवीं लोक मानस् की जीवन्त अभिव्यक्ति यहां के लोक-साहित्य में देखने को मिलती है।लोकगीत लोक विषयक होते हैं इनमें लोक जीवन की झाॅकियां रहती है। ये जनसाधारण के भावों,विभिन्न प्रसंगों व परिस्थितियों से युक्त होते हैं। इस प्रकार जीवन के विभिन्न-पक्षों का स्वरूप इन गीतो में प्रतिबिम्बत होता है। इन्ही को हम लोकगीत कहते है। लोकगीतों का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। समस्त जनमानस एकाकार होकर उत्सव आदि प्रसंगों पर सहज, सरल, भावपूर्ण रीति से इन गीतोे को गाता है। भारतीय साहित्य की भांति हरियाणवी लोक साहित्य के अन्तर्गत लोकगीतों का क्षेत्र अन्यन्त समृद्ध व व्यापक है। इनकी उत्पति सभवत मानव-सृष्टि के साथ ही हुई होगी और सृष्टि के आदि में आज तक निरन्तर यह परम्परा अबाध गति से चली आ रही है। संस्कारो से ही संस्कृति बनती आ रही है। संस्कार गीतों को सुनकर किसी भी संस्कृति को जाना जा सकता है। हरियाणा प्रदेश के विवाह गीतों को हम दो पक्षों मेें विभाजित कर सकते है। कन्या पक्ष व वर पक्ष कन्या पक्ष के गीतो में रस की बहुलता होती है। जिसका कारण है कि जिस कन्या का माता -पिता में बड़े प्यार से पालन -पोषन करते है। वही सदा के लिए दूसरे के घर चली जाती है। दूसरे उसके सुख की चिंता माता-पिता को सताती रहती है।

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योगमाया भारद्वाज (प्रवक्ता, राजकीय कन्या महाविद्यालय, बवानी खेड़ा, भिवानी, हरियाणा)