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सूर्यनारायण के उपन्यासों में अभिशप्त जीवन
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Pages:76-79
सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, पटेल नगर, हिसार, हरियाणा)
‘अभिशप्त’ शब्द का अर्थ होता है शापित, शापग्रस्त।’1 जिस पर मिथ्या आरोप किया गया है। उसे अभिशप्त कहा जाता है। यह संस्कृत का शब्द है। किसी जीव द्वारा शाप से ग्रसित जीवन जीना ही शापग्रस्त या अभिशप्त जीवन कहलाता है। यह जीव के कर्मो का फल होता है। सूर्यनारायण द्विवेदी जी के उपन्यास अशाशिशु एवं आत्रेयी अपाला, दोनो में अभिशप्त जीवन की कथा है। आशाशिशु में नारद मुनि के द्वितीय जन्म की अभिशप्त कथा है। पहले जन्म में वे उपवर्हण नाम के गन्धर्व थे। स्वर्ग में देवताओं की सभा में अपमानित होकर, अभिशप्त होकर उनकी आत्मा का दूसरा जन्म होता है। इसी दूसरे जन्म की कहानी को ही लेखक ने अपने उपन्यास का कथ्य बनाया है। स्वर्ग में स्वर्ग कन्याएं मेनका, उर्वशी, तिलोतमा आदि है। उपवर्हण व तिलोतमा में प्रेम उत्पन्न हो जाता है। उनका प्रेम सात्विक होता है पर स्वर्ग सभा में उसे विलासिता का नाम दे दिया जाता है तथा उपवर्हण को शाप से ग्रसित किया जाता है। उसका दूसरा जन्म एक वनचरी उपयमा से, एक अलौकिक घटना से होता है। उपयमा समझ नही पाती है कि कैसे गर्भवती हो गई। बाद में शिशु के साथ भी अनेक घटनाएं घटती है। कभी एक सफेद रंग का सांप उनके मुख पर छाया करता है बाद में वह गायब हो जाता है। स्वर्ग कन्याएं उसे देखने व मिलने आती हैं। उनकी बातों से ही उपवर्हण के अभिशप्त होने का पता चलता है। लेखक लिखता है- ‘ उर्वशी ने तिलोतमा की ओर उन्मुख होकर कहा-‘ पहचानती हो देवी तिलोतमा?उपवर्हण की ऊँगलियों के द्वारा झंकृत वीणा के स्वर से नदंन वन में देवसभा में देखते-देखते समा बंध जाता था। मुझे याद आते हैं वे क्षण जब तू उपवर्हण की बजाई गई वीणा से इतनी प्रभावित हो गई थी की आपा खो बैठी थी, जिसे देखकर हम लोगो ने उपवर्हण और तुम्हारे बीच विलासिता के सम्बंध की बात प्रसारित की थी।’2
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Pages:76-79
सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, पटेल नगर, हिसार, हरियाणा)