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सिनेमा और फाॅर्मुला

Original price was: ₹ 202.00.Current price is: ₹ 200.00.

Pages:88-89
प्रवेश कुमार (शोधार्थी, हिन्दी विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़)

साहित्य और अन्य कलाओं मंे जो स्थान शिल्प का है, सिनेमा में वह स्थान फाॅर्मुला ने ले लिया। यहाँ फाॅर्मुला से अभिप्राय उन घटकों से है, जिनके आधार पर दर्शकों की भावनाओं को तुष्ट किया जा सके। तुष्टिकरण की इसी नीति पर सिने-निर्माताओं ने सफ़ल फ़िल्मों के कारक घटकों की पहचान की और उन्हें किसी-न-किसी रूप में आगामी फ़िल्मों में लागू किया। प्रारम्भ में फ़िल्मों के ये घटक उस युग की अन्य फ़िल्मों द्वारा अपनाई गई शैली पर आधारित थे। रूपवान अभिनेता, रूपवति अभिनेत्री, युद्ध के दृश्य, सुन्दर प्रति के दृश्य, भाग-दौड़, चमक-धमक लिये सैट, हास्य, तिलिस्म, घुड़-दौड़ या बैलगाड़ी दौड़, दिव्य चमत्कार आदि ऐसे पैटर्न थे, जो प्रायः सभी फ़िल्मों में फाॅर्मुला के रूप में शामिल किए गए। मूक सिनेमा के अन्त के बाद संगीत, नृत्य, संवाद, गीत आदि अत्यन्त ही सफल सिद्ध हुए। बिना गीत-संगीत किसी व्यावसायिक फ़िल्म की कल्पना भी सम्भव न रह गई। समय के साथ-साथ नए-नए फाॅर्मुला खोजे गए, जिन्होंने फ़िल्मों की सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और सिनेमा की व्यवसायिकता बढ़ती चली गई।

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Pages:88-89
प्रवेश कुमार (शोधार्थी, हिन्दी विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़)