साम्प्रदायिकताः भारत विभाजन की जड़

Pages: 426-428
रवींद्र एवं नितेश कुमार (गुरु जम्भेश्वर धार्मिक अध्ययन संस्थान, गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार)

1857 की क्रान्ति के पश्चात अंग्रेज प्रशासकों ने भारत में बढ़ती हुई राजनैतिक चेतना को कमजोर बनाने के लिए अपनी ‘फूट डालो एवं राज करो’ की नीति के अन्तर्गत मुस्लिम साम्प्रदायिकता को उभारा। बढ़ती हुई साम्प्रदायिकता ने ही अन्ततः देश को दो भागों भारत-पाकिस्तान में बांट दिया। आज भी हमारे देश के लिए साम्प्रदायिकता एक गंभीर समस्या बनी हुई है। साम्प्रदायिकता की इस आग में घी के रूप में 1909 के भारत शासन अधिनियम ने काम किया।1909 के एक्ट में मानी गई मुसलमानों की मांगों के बारे में लार्ड मार्ले ने कहा था कि ‘‘इस निर्वाचक मण्डल के माध्यम से ऐसा बीज बो रहे हैं जिसकी .फसल कड़वी होगी।’’ न केवल मुसलमानों बल्कि हिन्दुओं में भी कुछ ऐसी प्रवृत्तियां विद्यमान थी जिन्होंने साम्प्रदायिकता को बढ़ाया। इसी क्रम में हिन्दुओं ने भी मुसलमानों की तर्ज पर विधायिकाओं में साम्प्रायिक आधार पर हिन्दू सीटों की मांग की। अब मुस्लिम लीग ने मुस्लिम जनता को उत्तेजित करने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना के द्वारा प्रचार किया कि ‘‘भारत में दो राश्ट्र हैं तथा दोनों को अपनी मातृभूमि के शासन में भाग मिलना चाहिए।’’ इस प्रकार देश में साम्प्रदायिक दंगों का सूत्रपात किया। जहाँ गांधी, नेहरू और पटेल विभाजन के विपक्ष में थे कालान्तर में नेहरू और पटेल तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए विभाजन को स्वीकार कर लेते हैं। वहीं मैं यह भी स्पश्ट करना चाहूँगा कि जहां जिन्ना के नेतृत्व में राजनीतिक गतिरोध पैदा होने से विभाजन अवश्यभाव हो गया लेकिन पाकिस्तान के निर्माण में अंग्रेजों का बहुत बड़ा हाथ था।

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रवींद्र एवं नितेश कुमार (गुरु जम्भेश्वर धार्मिक अध्ययन संस्थान, गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार)