वैष्णव धर्म में यज्ञ का प्रादुर्भाव
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Pages:213-215
गीता देवी (संस्कृत विभाग, कन्या महाविद्यालय, हिसार)
भारतीय संस्कृति और वेद पुराणों में यज्ञों की अपार महिमा निरूपित है। यज्ञ तो वैष्णव धर्म का मुख्य आधार है। यज्ञों के द्वारा विश्वात्मा प्रभु को संतृप्त करने की विधि बतलायी गयी है। अतः जो जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना चाहते हैं, उन्हे यज्ञ-यागादि शुभ कर्म अवश्य करने चाहिये। परमात्मा के निःश्वासभूत वेदों की मुख्य प्रवृत्ति यज्ञों के अनुष्ठान-विधान में है। यज्ञों द्वारा पर्जन्य वृष्टि आदि से संसार का पालन होता है। इस प्रकार परमात्मा यज्ञों के सहारे ही विश्व का संरक्षण करते हैं। यज्ञकर्ता को अक्षय सुख की प्राप्ति होती है। मनुष्य को अपने जीवन के सर्वविध कल्याणार्थ यज्ञन्धर्म का पालन करना चाहिये। मानव का और यज्ञ का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध सृष्टि के प्रारम्भकाल से ही चला आ रहा है। वस्तुतः देखा जाये तो मानव के जीवन का प्रारम्भ ही यज्ञ से होता है। इसका स्पष्टीकरण गीता में भी किया गया है
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Pages:213-215
गीता देवी (संस्कृत विभाग, कन्या महाविद्यालय, हिसार)