वैष्णवधर्म की उपासना में दार्शनिक दृष्टिः वैष्णवधर्म का दार्शनिक महत्व

Pages:227-229
गीता देवी (संस्कृत विभाग, कन्या महाविद्यालय, हिसार)

वैष्णव धर्म के साथ दर्शन की सम्बद्धता ने दर्शन को जीवन के लिए प्रवृत्त किया। धर्म का अविर्भाव ही व्यक्ति की लौकिक एवं पारलौकिक उन्नति के लिये हुआ (यतः अभ्युदयनिः श्रेयसिद्धिः सः धर्म‘‘) वैष्णव धर्म की उत्पत्ति मानवता को दुःखों से मुक्ति दिलाने के लिये हुआ है, इसलिये व्यक्ति के परम लक्ष्य के रूप में मोक्ष को प्रतिष्ठा प्राप्त हुई, जो कहीं दुखनिवृत्तिमात्र है तो कहीं-कहीं दुखनिवृत्ति के साथ-साथ आनन्द प्राप्त की भी अवस्था है। वैष्णव धर्म के दर्शन का मुख्य लक्ष्य जीवन के दुःखों को दूर करने का उपाय खोजना है अतः ऋषियों, आचार्यों ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिगृह को मानवमात्र का आचरण धोषित किया। अतः धर्माचार्य प्राणिमात्र के सुख एवं कल्याण की कामना करता है- सर्वे भवन्तु सुखिनः और वसुधैव कुटुम्कम् जैसे उद्धोषों में होती है।

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गीता देवी (संस्कृत विभाग, कन्या महाविद्यालय, हिसार)