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युग चेतक स्वामी तोतापुरी जी

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Page: 522-527
महेन्द्र सिंह (इतिहास विभाग, दयानन्द काॅलेज, हिसार, हरियाणा)

स्वामी तोतापुरी के बारे में जानकारी देने वाले स्रोत काफी सीमित है जिसके कारण उनके संदर्भ में शोध करना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है फिर भी उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वह कैथल के समीपवर्ती गांव बाबा लदाना के पुरी आश्रम के संत थे। यह आश्रम 18 वीं शताब्दी में बाबा राजपुरी के द्वारा स्थापित किया गया था। मठ परंपरा के अनुसार यह आश्रम शंकराचार्य की श्रृंगेरी पीठ के साथ जुड़ा है यहां के वर्तमान संत सामान्य वेशभूषा में रहते हैं, परंतु प्रारंभिक दौर में ये नाथ संप्रदाय के नागा संतो की भांति रहते थे अर्थात वे शरीर पर किसी तरह के वस्त्र धारण नहीं करते थे और दसों दिशाओं को वस्त्र मानते थे। ये संत जहां त्याग की विशिष्ट पहचान से अपने आप को स्थापित करते थे, वहीं लोभ, मोह, शोक व लज्जा से मुक्त होकर जीवन जीते थे। स्थानीय स्तर पर जनमानस के साथ-साथ अति विशिष्ट व्यक्ति जागीरदार, जमीदार, कुलीन तथा शासन व्यवस्था में ऊंची पहुंच वाले लोग भी इनके प्रति आदर व स्नेह रखते थे। आश्रम के रिकॉर्ड के अनुसार स्वामी तोतापुरी जी गुरु शिष्य-परंपरा की कड़ी में बाबा ज्ञान पुरी के बाद इस आश्रम के प्रमुख बने तथा 1871 से 1884 के बीच उन्होंने इस आश्रम का नेतृत्व किया। वे घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे तथा सामान्य रूप से अपने आश्रम के अतिरिक्त कहीं भी 3 दिन से अधिक प्रवास नहीं करते थे। इसी कारण उन्हें संपूर्ण भारत के विभिन्न स्थानों व आश्रमों में जाने का मौका मिला तथा विभिन्न तरह की जानकारी उनके जीवन का हिस्सा बनी। इस शताब्दी में जो सुधार आंदोलन चले या फिर जिन समाज सुधारकों ने काम किया, उनके कार्यों और गतिविधियों से हम परिचित हैं। इस कड़ी में उन महान व्यक्तित्वों के द्वारा, जो समाज विकास के नए अध्याय खोले गए उससे उनकी पहचान केवल भारत में नहीं बल्कि विश्व स्तर एक गूंज के रूप में दिखाई देती है। जैसे स्वामी दयानंद के जीवन में मथुरा के आचार्य दंडी की भूमिका है, वैसे ही स्वामी विवेकानंद के जीवन में गदाधर चट्टोपाध्याय या रामष्ण परमहंस की भूमिका महत्वपूर्ण है। अपने गुरु को सम्मान देते हुए स्वामी विवेकानंद ने जिस संस्था की स्थापना की, वह रामष्ण मिशन के नाम से जानी गई। वास्तव में यह उनका अपने गुरु के प्रति समर्पण था। यदि भावों को गहराई से समझें तो रामष्ण परमहंस इसी तरह की ज्ञान के लिए स्वामी तोतापुरी जी के प्रति समर्पित थे अर्थात ज्ञान की एक सरिता स्वामी तोतापुरी से गदाधर चट्टोपाध्याय और उनसे नरेंद्र तक पहुंची, जिसने विश्व में अपनी पहचान बनाई।

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Page: 522-527
महेन्द्र सिंह (इतिहास विभाग, दयानन्द काॅलेज, हिसार, हरियाणा)