भारतीय समाज में नारी की स्थिति

Pages:198-200
Pooja Rani (Research Scholar, CMJ University, Shillong)

मानव जीवन की सार्थकता नर तथा नारी के पारस्परिक संबंध पर निर्भर करती है। नारी पुरूष के पुरूषत्व को आधार प्रदान करती है। नारी के बिना पुरूष अधूरा है। नारी आदिम संस्कृति का उद्गम स्थल है। नारी सृष्टि की उत्पादिका, प्रतिपालिका और गृहस्थ सुख की सरिता का स्त्रोत है। पुरूष के जीवन का आरम्भ संघर्ष से होता है और स्त्री का आत्मसमर्पण से। नारी अपने आत्म-समर्पण से पुरूष के जीवन को पूर्ण बनाती है। ‘‘जीवन के कठोर संघर्ष में जो पुरूष विजयी प्रमाणित हुआ, उसे स्त्री ने कोमल हाथों से जयमाल देकर स्निग्ध चितवन से अभिनन्दित करके और स्नेह प्रवण आत्मनिवेदन से अपने निकट पराजित बना डाला।’’ एक-दूसरे पर अन्योन्याश्रित रहते हुए भी पुरूष नारी के शारीरिक दौर्बल्य का लाभ उठाकर उसे अपनी अंगूली पर नचाता रहा है। क्योंकि सृष्टि का यहीं अटल नियम है कि शक्तिशाली सदैव दुर्बल पर राज्य करता है। महादेवी वर्मा जी ने बहुत सुन्दर शब्दों में इस सत्य को प्रकट किया है ‘‘उसने (पुरूष) कहीं उस स्त्री को देवता की दासी बनाकर पवित्रता का स्वांग भरा, कहीं मन्दिर में नृत्य कराकर कला की दुहाई दी और कहीं केवल अपने मनोविनोद के लिए वस्तु मात्र बनाकर अपने विचार में गुण ग्राहकता दिखाई।’’

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Pooja Rani (Research Scholar, CMJ University, Shillong)