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प्रसाद के आर्थिक साहित्य पर पुनर्जागरण का प्रभाव
Pages:277-279
प्रियंका शर्मा (दिल्ली पब्लिक स्कूल, हिसार, हरियाणा)
प्रसाद के आर्थिक साहित्य पर पुनर्जागरण का प्रभाव स्पष्टतः परिलक्षित होता है। प्रसाद के हृदय को, जनता का करुण क्रन्दन, अर्थाभाव के कारण रोटी के लिए मची हुई हाहाकार, पूँजीपतियों के खूनी पँजों में फँसे हुए श्रमजीवी वर्ग की समस्याएँ तथा सामाजिक रूढ़ियों की शिकार हुई दैन्य तथा विवशता की मलित मूर्ति नारी की चीत्कार, सुदृढ़ न रख सकी। उनमें अन्तर्मन में भी एक तूफान उठने लगा। अतएव उन्होंने अपने नाटकों में समाज के इसी आर्थिक रूप के यथार्थ चित्रण को अपने साहित्य में निमग्नता से दर्शाया है। पुनर्जागण के प्रभाव स्वरूप श्रमजीवी दल में भी एक क्रांति आने ली और वह अपने आक्रोश को मिटाने के लिए पूंजीपतियों के विरु( विनाशकारी भावना लेकर उद्यत होने लगा था। सोवियत रूस में जनक्रान्ति सफल हो रही थी। कार्लमाक्र्स के साम्यवाद की शंखध्वनि सुनकर विश्वभर का दलित जनसमुदाय देश तथा जाति का विभेद मिटाकर की शंखध्वनि सुनकर विश्वभर का दलित जनसमुदाय देश तथा जाति का विभेद मिटाकर एक होने लगा। आर्थिक तथा भौतिक आधार पर यह विश्वव्यापी एकीकरण था। इसी की प्रतिध्वनि ‘राज्यश्री’ नाटक में भी सुनाई देती है। राज्यश्री अपने भाई के साथ कषाय धारण करती है तथा अपना सारा वैभव ‘लोकसेवा’ में छोड़ जाती है। तथा सभी समवेत स्वर में गाते है।
Description
Pages:277-279
प्रियंका शर्मा (दिल्ली पब्लिक स्कूल, हिसार, हरियाणा)