दादूदयाल की जीवन यात्रा

Pages:81-82
Bimla Lathar (Department of Hindi, C.R.M. Jat College, Hisar, Haryana)

सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत वर्ष सन्तों की जन्मभूमि और रचना भूमि रही है।यहाॅं समय-समय पर दानी, ऋषि, न्यायकारी और सन्त जैसी विभूतियाॅं जन्म लेती रही हैं जिनके कारण आज भी हमारा देश भारत वर्ष गौरवान्वित है। उन्हीं विभूतियों में से सन्तकाव्य धारा में हिन्दी के भक्ति काल में ज्ञानाश्रयी शाखा के सन्त कवि थे दादूदयाल। दादू का जन्म ;1544.1603 ई0द्ध अनुमानतः अहमदाबाद ;गुजरातद्ध में हुआ था। इनके जीवन वृतान्त का पता नहीं चलता। गृहस्थी त्यागकर इन्होंने 12 वर्षो तक कठिन तप किया। गुरू-कृपा से सिद्धि प्राप्त हुई तथा सकड़ों शिष्य हो गए। इनके 52 पट्टशिष्य थे, जिनमें गरीबदास, सुन्दरदास, रज्जब और बखना मुख्य हैं। दादू के नाम से दादू पंथ चल पड़ा। ये स्वभाव से साधारण और हृदय से अत्यधिक दयालु थे, इस कारण इनका नाम दादूदयाल पड़ गया। दादू हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी आदि कई भाषाओं के ज्ञाता थे। इन्होंने सबद और साखी लिखी। इनकी रचना प्रेमभाव पूर्ण हैं। जात-पात के निराकरण, हिन्दू-मुसलमानों की एकता आदि विषयों पर इनके पद तर्क-प्रेरित न होकर हृदय-प्रेरित हैं।

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Pages:81-82
Bimla Lathar (Department of Hindi, C.R.M. Jat College, Hisar, Haryana)