डा. सूर्यनारायण द्विवेदी के उपन्यासो की भाषा शैली

Pages:31-33
सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, आर्य नगर, हिसार, हरियाणा)

भाशा विचारों को व्यक्त करने का एक सहज एंव सशक्त साधन है। प्रत्येक लेखक अपने लेखकीय दायित्वों का निर्वाह करते हुए अनायास ही उस भाशा की सरंचना करने लगता है, जो उसके भावों एंव विचारों को मूर्त रुप में प्रस्तुत कर सके। उपन्यास के विभिन्न तत्वों में भाशा शैली का महत्वपूर्ण स्थान होता है। भाशा के माध्यम से अभिव्यक्त होकर ही लेखक के विचार पाठक तक पहुॅंचते है। यदि भाशा प्रौढ़ एंव प्रवाहपूर्ण होगी तो रचना के प्रति पाठक का आकर्शण बढ़ेगा। अतः सफल साहित्यकार वही है जिसका भाशा पर पूर्ण अधिकार हो। दूसरे शब्दों में भाशा ऐसे शब्दांे का समूहों का नाम है जो एक विशेश क्रम से व्यवस्थित होकर मन की बात दूसरों के मन तक पहुॅंचाने और उसके द्वारा उसे प्रभावित करने में समर्थ रहती है। इसलिए भाशा का मूल आधार शब्द है। जिन्हें उपयुक्त रीति से प्रयुक्त करने के कौशल को ही शैली का मूलतत्व समझना चाहिए। अर्थात् किसी लेखक या कवि की शब्द योजना, वाक्याशों का प्रयोग, वाक्यों की बनावट उसकी ध्वनि आदि का नाम ही शैली है। शैली के कारण लेखक की अपनी पहचान बन जाती है। भाशा, प्रसंग, पात्र एंव परिवेश के अनुरुप होनी चाहिए। संस्कृत गर्भित, तत्सम् शब्दावली से पूर्ण परिनिश्ठित साहित्यिक भाशा और बोलचाल की सामान्य भाशा, उपन्यासकार किसी भी भाशा का प्रयोग उपन्यास में कर सकता है।

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Pages:31-33
सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, आर्य नगर, हिसार, हरियाणा)