ग्रामीण समाज में दाई की भूमिका
Pages: 553-556
सुनीता नेगी एवं बीना सकलानी (मानव विज्ञान विभाग, हे.न.ब.ग. (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल)
प्रस्तुत शोध पत्र में ग्रामीण समाज में मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य के रखरखाव में दाई की भूमिका का अध्ययन किया जायेगा किस प्रकार से प्रसव वेदना एवं गर्भावस्था में सघ्ंार्ष के दौरान जैसे सुदृढ़ आर्थिक स्थिति का अभाव, सड़क या गाॅव से स्वास्थ्य केन्द्र की दूरी, अचानक प्रसव पीड़ा होने पर कुशल कर्मियों के उपलब्ध नही होने से आपातकालीन स्थिति में दाईयां घर घर जाकर अपनी सेवायें देती है। गर्भावस्था के दौरान ग्रामीण महिलाओं को कृषि कार्य एवं पशुपालन हेतु चारे की व्यवस्था करने के दौरान शारीरिक परिश्रम के कारण समस्यायें जैसे पेट दर्द, कमर दर्द एवं जांघों में दर्द होने पर 42 प्रतिशत महिलायें दाई से सम्पर्क करती हैं, तथा 68 प्रतिशत महिलाओं ने प्रसव पीड़ा में दाई द्वारा सेवायें ली है। समाज में दाई प्रसव एवं गर्भावस्था के अतिरिक्त नवजात का पेट दर्द हेतु परम्परागत रखरखाव भी करती हंै। प्रशिक्षित एवं प्रशिक्षित दाई की कार्यशैली में अन्तर पाया गया है। उपर्युक्त तथ्यों के बावजूद डब्ल्यू.एच.ओ. मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर प्रसव हेतु दाई को छोड़कर कुशल कर्मी नर्स या डा.ॅ की सिफारिश करता है। प्रस्तुत शोध पत्र प्राथमिक स्त्रोतों पर आधारित हें जिसमें वर्णनात्मक एवं साख्ंियकीय तथ्यो का विवरण है।
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सुनीता नेगी एवं बीना सकलानी (मानव विज्ञान विभाग, हे.न.ब.ग. (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल)