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आत्रेयी अपाला का ताŸिवक अध्ययन
Pages:189-191
सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, पटेल नगर, हिसार, हरियाणा)
उपन्यास, चाहे वह ऐतिहासिक हो अथवा सामाजिक, कल्पना प्रधान हो अथवा यथार्थ-प्रधान उसमें मानव चरित्र का चित्र अवश्य होता है। अतः उसमें मानव के स्वभाव, गुण,रुचियों एवं कार्य-व्यापारों का, अन्तर्मन के तलस्पर्शी अध्ययन से सम्पुश्ट चित्रण अपेक्षित है। उसमें मानव चरित्र एवं उसके कार्य-व्यापारों का अधिकाधिक संजीव,स्वाभविक एवं कलापूर्ण चित्रण होना चाहिए। मुन्शी प्रेमचन्द जी कहते हैं-‘‘ उपन्यासों के लिए पुस्तकों से मसाला न लेकर जीवन से ही लेना चाहिए।’’1 आत्रेयी अपाला’ उपन्यास के स्रष्टा ड़ा. सूर्यनारायण जी की औपन्यासिक कला में प्रौढ़ता एवं सुष्ठुता है। इस उपन्यास में वैदकालीन अभिशप्त अपाला के जीवन की विडम्बनाओं, विदू्रपताओं का लेखक ने मार्मिक चित्रण किया है। सामान्यतः उपन्यास के छह प्रमुख तत्व माने जाते है- कथावस्तु, पात्र एंव चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल अथवा वातावरण, भाषाशैली एंव उद्ेश्य। इन तत्वों का उपन्यास में होना अनिवार्य माना जाता है और किसी भी उपन्यास का तात्विक मूल्यांकन इन्हीं तत्वों को ध्यान में रखकर किया जाता है। ‘आत्रेयी अपाला’ उपन्यास में इन तŸवों का निर्वाह पूर्णरुप से हुआ है।
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Pages:189-191
सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, पटेल नगर, हिसार, हरियाणा)