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आचार्य निशांतकेतु की कहानियों में नारी उत्पीड़न एवं अनुशीलन

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Pages:192-193
Babita (CMJ University, Shillong, Meghalaya)

‘नार्यस्तु यत्र पूज्यते, रमन्ते तत्र देवताः’ की मनुस्मृति-दृष्टि का विलोपन कब और कैसे हुआ, यह शोध का विषय है। वेदकालीन नारी को परिवार और समाज में जो सम्मान, प्रतिष्ठा और अधिकार प्राप्त थे, उनमें क्रमशः बढ़ती पुरुष-वर्चस्विता के कारण धीर-धीरे कमी आती गई, कटौती होती चली गई। फलस्वरूप नारी की सामाजिक स्थिति हेय बनती चली गई। एक समय ऐसा भी आया कि वह पुरुष के पैरों की जूूती बनकर रह गई। पुरुषों की सत्ता ने उसे गुलामी की जंजीरों में जकड़ दिया। नारी-मन, उसकी आकांक्षाएँ, संवेदनशीलता की परवाह किए बिना उसके कायिक सौंदर्य की प्राप्ति और दैहिक उपभोग की मंशा की पूर्ति के लिए न जाने कितने युद्ध हुए, कितनी हिंसा हुई। पराजित राजा को राज्य से वंचित होना पड़ा या फिर जान से हाथ धोना पड़ा, लेकिन नारियों को जीते-जी अग्नि-समाधि लेनी पड़ी और जो ऐसा नहीं कर पाई, उन्हें खलनायकों के आगे जबरन समर्पण करना पड़ा और आजीवन मौन सिसकियों का आश्रय ग्रहण करने के लिए विवश होना पड़ा। रामायण-काल से महाभारत-काल तक, मुस्लिम-शासन से लेकर फिरंगी-काल तक और अब स्वातंत्र्योत्तर भारत का समाज भी नारी के लिए साँसत-काल है। तथाकथित सामंती व्यवस्था के उन्मूलन और लोकशाही व्यवस्था की स्थापना के बावजूद नारी-उत्पीड़न की खबरें समाचार-पत्रों और विविध संचार-माध्यमों के जरिए प्रमुखता के साथ प्रकाशित-प्रसारित हो रही हैं। भारतीय-समाज के जाने कितने दशक नारी-उत्पीड़न के साक्षी रहे हैं और समकालीन समाज भी अपनी आँखें मूूँदकर नारी-उत्पीड़न की करूण गाथाएँ अपने बहरे कानों से सुन रहा है। नारी-सशक्तीकरण, सम्मान और अधिकारों की बहाली के लिए सरकारों ने कई कानून पारित किए, लेकिन उत्पीड़न की घटनाओं में ज्यादा कमी नहीं दीखती।

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Pages:192-193
Babita (CMJ University, Shillong, Meghalaya)