
डाॅ. द्विवेदी के उपन्यासों में आध्यात्मिकता
Pages:286-288
सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, पटेल नगर, हिसार, हरियाणा)
’अध्यात्म का अर्थ होता है आत्मा संबंधी या आत्मा परमात्मा के सम्बन्ध में चिन्तन मनन।1. अध्यात्म ज्ञान आत्मा सम्बंधी ज्ञान होता है। आत्मा व परमात्मा का विचार करने वाले शास्त्र को अध्यात्म विद्या कहा जाता है। भगवान के प्रति लगाव होना, आत्मा- परमात्मा का मिलना, आत्मा का परमात्मा या विश्व आत्मा के तडफना, दिन रात उस एक प्रभु को याद करना । ये सभी आत्यात्मिक भाव होते हैं। जब भक्त स्वंय को पुरी तरह से ईश्वर के प्रति समर्पित कर देता है। उसकी आत्मा परमज्योति को पाने के लिए तडफने लगती है। वह सब संसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। त बवह उसकी प्रणय साधना बन जाती है। वह अपनी आत्मा से बातें करता है। भक्त अपनी भक्ति में ही रमा रहता है। उसकी भक्ति भावना में इतनी शक्ति आ जाती है कि वह ईश्वर को पा जाता है। डा0 सूर्यनारायण द्विवेदी के सभी उपन्यास आध्यात्मिक भावों से भरे हुए हैं। उनके उपन्यासों का आधार स्त्रोत पौराणिक धार्मिक ग्रंथ रहे हैं।
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Pages:286-288
सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, पटेल नगर, हिसार, हरियाणा)