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महाभारत के रंगमंचीय प्रस्तुतिकरण में नाटकीय संभावनाएं

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Pages: 1662-1672
गुरतेज सिंह (परफोर्मिंग आर्ट्स डिपार्टमेंट, लवली प्रोफेशल यूनिवर्सिटी, जालंधर, पंजाब)

इस शोध पात्र का उदेश्य वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत में निहित नाटकीय तत्वों का विश्लेषण करना ह। आज पांच हजार वर्ष पूर्व बीत जाने पर आज भी महाभारत रंगकर्मियों की पहली पसंद बनी हुई है और समय-समय पर उनको खुद पे लिखने और खेलने के लिए प्रेरित करती रहती है। धर्मवीर भारती से लेके बरूक तक और चोपड़ा से लेके एस-एस राजा मौली तक इसको परदे पे खेल रहे है। इसका एक ही कारण है इसके अन्दर छिपी हुई नाटकीयता जो इसके किरदारों में, इसके पाठ्य में समाई हुई है। ये एक रूप में है और किसी रूप में भी बंधी नहीं हुई। रंगमंच का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसमे इसको ना खेला गया हो, या खेला ना जा सके। जिस तरह एक समंदर के गर्भ में अनंत संसार छिपा हुआ है जो किसी को दिखता नहीं, उसी तरह इस के अंदर नाटकीयता का बहुत बड़ा संसार है जो दिखता नहीं उसे ढूंढना पड़ता है। उसी नाटकीयत संसार को खोज कर बाहर लाने का प्रयत्न करना इस पत्र का उदेश्य है।

Description

Pages: 1662-1672
गुरतेज सिंह (परफोर्मिंग आर्ट्स डिपार्टमेंट, लवली प्रोफेशल यूनिवर्सिटी, जालंधर, पंजाब)