स्वामी विवेकानंद और उनके प्रेरक विचार

Pages:208-209
प्रियंका शर्मा (दिल्ली पब्लिक स्कूल, हिसार, हरियाणा)
प्रियंका शर्मा (दिल्ली पब्लिक स्कूल, हिसार, हरियाणा)

स्वामी विवेकानंद जी कहा करते थे ”मनुष्य निर्माण ही मेरा जीवनोद्देश्य है“ और वास्तव में यदि हम स्वामी विवेकानंद के जीवन एवं कार्यों को देखें तो उनकी कथनी और करनी एक सी ही थी। स्वामी जी का सारा जीवन मनुष्य निर्माण में ही लगा। वे युवकों से कहते थे ”अपनी दुर्बलताओं पर बार-बार मत सोचो, शक्ति का ध्यान करो, शक्ति की साधना करो….. समस्त वेद वेदांत का सार यही है अभयम्-शक्ति, सामथ्र्य…. मेरे युवा मित्रो। शक्तिवान बनो। यही मेरा तुम्हें परामर्श है फुटबाॅल के खेल द्वारा बलवान होकर तुम प्रभु के निकट शीघ्र आ सकते हो-निर्बल रह कर गीता अध्ययन से तुम्हें ब्रह्म की प्राप्ति नहीं हो सकेगी। यह मैं तुम्हें पूरी नष्ठिा से कह रहा हूं क्योंकि मेरा तुम पर स्नेह है। मुझे तुम्हारी पूर्व जिज्ञासा का ज्ञान है।“ 24 जनवरी, 1896 ई॰ को स्वामी विवेकानंद ने न्यूयाॅर्क से एक पत्र भारत में अपने गुरु भाई योगानंद को लिखा। उसमें कहा ”स्वयं कुछ करना नहीं और दूसरा कोई कुछ करना चाहे तो उसका मखौल उड़ाना हमारी जाति का यह एक बड़ा दोष है और इसी से हमारी जाति का सर्वनाश हुआ है। हृदयहीनता तथा उद्यमों का अभाव सब दुःखों का मूल है।“ इसी प्रकार एक अन्य पत्र में लिखा ”लाखों रुपया खर्च कर काशी तथा वृंदावन के मंदिरों के पट खुलते और लगते हैं। कहीं ठाकुर जी वस्त्र बदल रहे हैं तो कहीं भोजन या कुछ और कर रहे हैं किन्तु दूसरी ओर जीवित ठाकुर भोजना और विद्या के बिना मरे जा रहे हैं। यही हमारे देश की सबसे बड़ी बीमारी है। यह पागलपन नहीं तो और क्या है। नर सेवा ही नारायण सेवा है। दरिद्र नारायण ही तुम्हारे भगवान हैं। उन्हीं की मन, वचन, कर्म से सेवा करो।“

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प्रियंका शर्मा (दिल्ली पब्लिक स्कूल, हिसार, हरियाणा)
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