भारतेन्दु युग और राष्ट्रीय काव्यधारा
Pages:230-231
किरण बाला (गवर्मेन्ट गल्र्स प्राइमरी स्कूल, बहादुरगढ़, हरियाणा)
राश्ट्रीय काव्यधारा का सृजन-क्षेत्र भारत तक सीमित न होकर विश्व व्यापी है। संपूर्ण विश्व में प्रत्येक देश में ज्यों-ज्यों स्वयं को आधुनिकता के सांचे में ढाला त्यों-त्यों वहाँ का काव्य राष्ट्रीय काव्य-धारा से युक्त होता चला गया है। भारतीय साहित्य में राष्ट्रीय काव्य-धारा, देश प्रेम, राष्ट्र-भक्ति की पावन सुगंधि मलय-पवन के मन्थर झोंकों के साथ समस्त वायुमंडल में निरंतर रस संचार करती रही है। ऋग्वेद से लेकर पूर्ववर्ती भाषाओं अपभ्रंश, पाली और प्रकृत में देशानुराग के गीत गाने वाले कवियों की कमी नहीं है। भारतेंदु युग तक आते-आते यह राष्ट्रीय काव्य-धारा एक व्यापक फलक पर अपना प्रभाव छोड़ती नजर आती है। भारतेंदु युग में राष्ट्रीय काव्य धारा के दो क्षेत्र नजर आते हैं, प्रथम राजभक्ति तथा दूसरी राष्ट्र भक्ति। कहीं-कहीं दोनों का समन्वित रूप भी इस युग के काव्य में उपलब्ध होता है। भारतेन्दू ने राष्ट्रीयता की हुंकार और गर्जना ’भारत-जय’ नामक कविता में इस प्रकार प्रकट की है
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Pages:230-231
किरण बाला (गवर्मेन्ट गल्र्स प्राइमरी स्कूल, बहादुरगढ़, हरियाणा)