हिन्दी साहित्य और दलितः एक विवेचनहिन्दी साहित्य और दलितः एक विवेचन
Pages:232-234
अनीता देवी (शोधार्थी एम.फिल हिन्दी विभाग, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र)
दलित साहित्य से अभिप्राय दलित जीवन और उनकी घटनाओं व तथ्यों पर आधारित लेखन की समस्याओं को मध्य में रखकर साहित्य सृजन के आन्दोलन से है। हिन्दू समाज में दलितों को सबसे निम्न दर्जे का होने के कारण शिक्षा, समानता, न्याय तथा स्वतन्त्रता आदि संविधान में उल्लेखित मौलिक अधिकारों से दूर रखा जाता था। हमारे सजाज में सबसे अधिक शोषण चाहे वो सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक या अपने अधिकारों के प्रति हो इसका सबसे अधिक असर दलितों व उनकी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। जिसके कारण उनका जीवन-स्तर निम्न से निम्न दर्जे का होता गया। भारत में दलितों की उपेक्षा होते हुए शताब्दियां बित गई। हिन्दू धर्म में परम्परागत रूप से चली आ रही प्रथाओं जिसमें अस्पृश्यता, अछूत और वर्ण व्यवस्था के रूप में दलितों को पहचान मिली। हिन्दू समाज का वह वर्ग, जो सबसे नीचा माना गया हो, दुखी और दरिद्र हो और जिसे उच्च वर्ग के लोग उठने न देते हो जैसे भारत की छोटी या अछूत मानी जाने वाली जातियों का वर्ग। जैसे ही दलित वर्ग में क्रांति आई उस क्रंाति का नाम ही दलित साहित्य है।
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Pages:232-234
अनीता देवी (शोधार्थी एम.फिल हिन्दी विभाग, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र)