पंजाब विभाजन का प्रभावः सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य
Pages: 309-312
सुभाष चन्द्र ( मिगनी खेड़ा, हिसार, हरियाणा)
भारत का विभाजन दुखदायी घटनाओं में से एक थी जिसने देश के दो राज्यों पंजाब और बंगाल का विभाजन भी कर दिया। इसके परिणामस्वरूप पंजाब के लोगों को विस्थापन की कष्टपूर्ण एवं दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों से गुजरना पड़ा। विभाजन जहां एक समस्या का समाधान था, वहीं दूसरी और सजा के रूप में सामने आया, जिसका सामना विभाजन और विस्थापन के दौरान लोगों को करना पड़ा। अध्ययन क्षेत्र में उन समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है जो सामाजिक-आर्थिक रूप से विस्थापन के दौरान लोगों के सामने थी। पंजाब विभाजन और विस्थापन के प्रमुख कारण धार्मिक उन्माद ने वहां ग्रामीण और शहरी स्तर पर वृहत जन-धन-हानि की, वही इसने लोगों में असुरक्षा की भावना को बढ़ाया क्योंकि इस दौरान यातायात का कोई भी साधन सुरक्षित नहीं था। असुरक्षा की भावना ने पक्षपात और अमानवीय व्यवहार को बढ़ाया। अफवाह तथा साधनों का अभाव इस समय एक और बड़ी समस्या बन गई थी। इसके साथ-साथ विस्थापन के समय राशन और भोजन की बड़ी समस्या थी। शिक्षा के लिए कोई ठोस कदम नही उठाए गए। रेलवे स्टेशनों और कैम्पों में गन्दगी और सफाई की समस्या थी। अफवाहों की वजह से लोगों को अपना व्यापार, स्थान व सम्पति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदलना एक बड़ी समस्या थी। इसके अलावा लोगों के सामाजिक ढांचे में मूलभुत बदलाव आये, कीमतों में उतार-चढ़ाव व उद्योगों का विनाश, व्यवसाय में भिन्नता आना तथा हिन्दु मुस्लिम और सिक्खों द्वारा छोड़ी गई भूमि के बीच के अन्तर को समाप्त करना भी बड़ी समस्या थी। इन्हीं समस्याओं को सामाजिक आर्थिक सन्दर्भ में समझना इस अध्यापन का प्रमुख उद्देश्य है।
Description
Pages: 309-312
सुभाष चन्द्र ( मिगनी खेड़ा, हिसार, हरियाणा)