हिन्दी कथा साहित्य में दलित विमर्श

Pages:79-80
Anju Bala1 and Sarita2 (Village Mandhi Piranu, Mandhi Hariya, Charkhi Dadri. Bhiwani, Haryana1 and VPO, Birohar, Tehsil, Jhajjar, Haryana2)

दलित का अर्थ समाज के दबे कुचले वर्ग से लिया जाता है, किन्तु इधर कुछ वर्षाे से दलित का अभिधेयार्थ ‘अनुसूचित जाति’ तक सीमित रह गया है। दलित चेतना का तात्पर्य अनुसूचित जाति के युवको में अन्याय, शोषण, वर्ग भेद, जाति भेद के विरूद्व चेतना जाग्रत होने से लिया जाता है। वास्तविकता यह है कि दलित वर्ग के अन्तर्गत शोषित वर्ग के साथ – साथ आदिवासी, खेतिहर मजदूर, गरीब किसानों को भी सम्मिलित किया गया है भले ही वे किसी जाति के हो। दलित का तात्पर्य समाज के उस पददलित वर्ग से है जिसे सदियों से ‘अछूत’ कहकर उपेक्षित किया गया, हर प्रकार से उसका शोषण किया गया, उसे कोई अधिकार नहीं दिए गए, शिक्षा से वंचित रहा और उसकी इच्छा शक्ति को पनपने नहीं दिया गया।

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Pages:79-80
Anju Bala1 and Sarita2 (Village Mandhi Piranu, Mandhi Hariya, Charkhi Dadri. Bhiwani, Haryana1 and VPO, Birohar, Tehsil, Jhajjar, Haryana2)