हिन्दी कथा साहित्य में दलित विमर्श

Pages:96-97
Anju Bala (Village Mandhi Piranu, Mandhi Hariya, Charkhi Dadri. Bhiwani, Haryana)

दलित का अर्थ समाज के दबे कुचले वर्ग से लिया जाता है, किन्तु इधर कुछ वर्षाे से दलित का अभिधेयार्थ ‘अनुसूचित जाति’ तक सीमित रह गया है। दलित चेतना का तात्पर्य अनुसूचित जाति के युवको में अन्याय, शोषण, वर्ग भेद, जाति भेद के विरूद्व चेतना जाग्रत होने से लिया जाता है। वास्तविकता यह है कि दलित वर्ग के अन्तर्गत शोषित वर्ग के साथ – साथ आदिवासी, खेतिहर मजदूर, गरीब किसानों को भी सम्मिलित किया गया है भले ही वे किसी जाति के हो। दलित का तात्पर्य समाज के उस पददलित वर्ग से है जिसे सदियों से ‘अछूत’ कहकर उपेक्षित किया गया, हर प्रकार से उसका शोषण किया गया, उसे कोई अधिकार नहीं दिए गए, शिक्षा से वंचित रहा और उसकी इच्छा शक्ति को पनपने नहीं दिया गया। दलित साहित्य की जन्मभूमि महाराष्ट्र है। मराठी साहित्य में सर्वप्रथम दलित साहित्य का प्रारम्भ हुआ। प्रारम्भ में कुछ लोगों ने इसका अर्थ यह भी लिया कि जो साहित्य स्वयं दलित वर्ग के लोगों ने लिखा वही दलित साहित्य है, किन्तु आज भारत की अनेक भाषाओं में दलित साहित्य की रचना तमाम ऐसे लोग भी कर रहे हैं जो स्वयं दलित वर्ग के नहीं हैं। महाराष्ट्र में दो दलित नेताओं महात्मा फूले एवं डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों ने दलितों में चेतना जागृत की और अनेक लेखकों ने इनसे अनुप्राणित होकर दलित चेतना से युक्त साहित्य का सृजन किया।

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Anju Bala (Village Mandhi Piranu, Mandhi Hariya, Charkhi Dadri. Bhiwani, Haryana)