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हरियाणा के विवाह सम्बन्धी लोकगीतों में पर्यावरण
Pages:289-293
रेणु शर्मा (पी.एचडी. हिन्दी, सोनीपत, हरियाणा)
हरियाणवी लोकगीतों में जहाँ पेड़-पौधों का स्पष्ट व साफ-सुथरा वर्णन है वहीं पर धार्मिक मान्यताएँ भी हैं। विवाह के शुभ अवसर पर प्रकृति एवं वनस्पतियों के द्वारा देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पूजा की जाती है क्योंकि देवी-देवताओं के द्वारा ही हमारी सृष्टि संचालित होती है और इन्हीं पेड़-पौधों पर देवताओं का निवास है – पाँच पतासे पान्या का बिड़ला, लै सैयद पै जाइयों जी जिस डाली म्हारा सैयद बैठ्या, वा डाली झुक जाइयों जी पाँच पतासे पान्या का बिड़ला, लै माता पै जाइयों जी जिस डाली म्हारी माता बैठी, वा डाली झुक जाइयों जी पाँच पतासे पान्या का बिड़ला, लै देवीपै जाइयों जी जिस डाली म्हारी देवी बैठी, वा डाली झुक जाइयों जी।84 विवाह के अवसर पर इस लोकगीत के माध्यम से पवन पुत्र हनुमान की आराधना भी की जाती है। वायु के बिना कोई भी जीव-जन्तु सांस नहीं ले सकता। ऐसे देवता के निवास स्थान पर प्रकृति रूपी चंदन वृक्ष के माध्यम से प्रकाश डाला गया है। जिससे शीतलता प्राप्त होती है और शुभ अवसर पर इसका प्रयोग होता है – काहे की तेरी ओबरी, काहे का जड़ाए किवाड़, सच्चा हनुमान बली अगड़ चन्दन की ओबरी, चन्दन चड़ाए किवाड़, सच्चा हनुमान बली।85
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Pages:289-293
रेणु शर्मा (पी.एचडी. हिन्दी, सोनीपत, हरियाणा)