हरियाणा के फागुन के गीत सम्बन्धी लोकगीतों में पर्यावरण

Pages:280-285
रेणु शर्मा (पी.एचडी. हिन्दी, सोनीपत, हरियाणा)

हरियाणा’ शब्द वैदिक कालीन शब्द है जिसकी व्युत्पत्ति ’हरि’ अथवा ’हर’ और ’यान’ के योग से हुई है। इसका व्युत्पत्तिमूलक अर्थ है हरि या हर का यान हरस्ययानम् हरयानम्। हर का अर्थ है देवाधि देव, आदि देव, महादेव शिव। ’यान’ के संस्कृत में कई अर्थ हैं – जाना, सवारी करना। एक जनश्रुति के अनुसार एक बार महाराजा हरिशचन्द्र यहाँ आये थे। जिन्होंने इसे बसाया और सँवारा। फलस्वरूप ’हरिशचन्द्र’ अर्थात् हरि का आना हरियाणा नाम से यह नगर विख्यात हो गया। वस्तुतः सर्वप्रथम ’हरयान’ शब्द का प्रयोग संसार के अंयतम और प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में ’रज हरयाणे’ के रूप में हुआ। ऋग्वेद के बाद निरूक्त के नैगम काण्ड में भी ’हरयानो’ हरमाणयान’ गमनशीलागनः शब्द का प्रयोग बिना किसी विकार के हुआ है। हरियाणा के बारे में भी यही कहा जाता है कि इस प्रदेश में जो जंगल या वन था उसका नाम ’हरियावन’ प्रदेश कहा जाने लगा। फिर यही हरियावन – हरिआवन – हरियाअन – हरियान – हरियाना हो गया। इसी प्रकार हरियाणा के बारे में ’पाश्र्वनाथ-चरित्र’ में अपना परियच देते हुए जैन कवि श्रीधर ने लिखा है कि वे हरियाणावासी हैं। प्राचीन शिलालेखों में हरियाणा के तीन विविध नाम मिलते हैं हरियाणा, हरियाणक और हरितानक। डाॅ॰ शंकर लाल यादव ने हरियाणा का नामकरण स्पष्ट किया है – ’’हरियाणा प्रान्त का इतिहास एक रूप से उपेक्षित रहा है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर अब तक का इतिहास इस प्रदेश के विषय में मूक बना हुआ है। शक, मालव आदि तक्षशिला को केन्द्र बनाकर विकसित हुए। उनके समय में मथुरा नगर ऐतिहासिक प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था किन्तु तक्षशिला और मथुरा के मध्यवर्ती इस प्रदेश को कोई ऐतिहासिक महत्ता नहीं मिली। खेद की जिस महान प्रदेश को आज हरियाणा के नाम से पुकारा जाता है उस प्रदेश का प्राचीन ग्रन्थों में इस नाम से कहीं वर्णन तक नहीं मिलता।

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रेणु शर्मा (पी.एचडी. हिन्दी, सोनीपत, हरियाणा)