हरियाणवी लोकगीत परम्परा में विवाह के गीत

Pages:89-93
रेणु शर्मा (पी.एचडी. हिन्दी, सोनीपत, हरियाणा)

लोक साहित्य किसी एक व्यक्ति विशेष द्वारा रचित साहित्य को नहीं कहा जा सकता। यह तो सनातन पीढ़ी दर पीढ़ी संचित लोकजीवन की अनुभूतियों और अनुभवों का दिव्य कोश है। लोक साहित्य के तत्वों का सामंजस्य पूर्ण प्रयोग लोकसाहित्य में बड़ी सहजता एवं शिष्टता के साथ होता है। लोक साहित्य की मूल प्रेरणा मानव एवं लोकजीवन में निहित है जिसके विभिन्न पक्षों से प्रेरित होकर ही श्रेष्ठ लोकसाहित्य का निर्माण होता है। लोकसाहित्य का उद्गम सनातन, शाश्वत, समाज समूहों, लोक संस्कृतियों से हुआ है। लोक साहित्य की अर्थवता और महत्व के बारे में विद्वानों का ध्यान 17वीं शताब्दी में गया। लोकसाहित्य इतना व्यापक और वृहद है कि उसका अवलोकन व वर्गीकरण करने से अध्ययन, मूल्यांकन, शोध करने में सुविधा रहती है। जिसको लोकगाथा, लोकगीत, लोकनाट्य, लोककथा और प्रकीर्ण साहित्य आदि नामों से अभिहित किया गया है।

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Pages:89-93
रेणु शर्मा (पी.एचडी. हिन्दी, सोनीपत, हरियाणा)