स्वामी विवेकानन्द का हिन्दूत्व एवं राष्ट्रवाद

Pages:76-78
सुनीता देवी (सहायक प्राध्यापिका, छाज्जु राम जाट काॅलेज, हिसार)

विवेकानन्द को भारत में हिन्दू धर्म की महानता और सार्वदेशिकत में अखण्ड विश्वास था और वे ये कहते-अघाते नहीं थे कि ‘‘पृथ्वी पर ऐसा कोई धर्म नहीं है, जो हिन्दू धर्म के समान इतने उच्च स्वर से मानवता और गौरव का उपदेश करता हो।’ पर उन्हें पीड़ा इस बात की थी कि पाखण्डी पण्डितों और पुरोहितों ने धर्म के नाम पर स्वार्थ का विकास कर हिन्दू धर्म को कलंकित कर दिया, और इसलिए विवेकानन्द के मुख से ये शब्द फूट पड़े थे – ‘‘पृथ्वी पर ऐसा कोई धर्म नहीं है जो हिन्दू धर्म के समान गरीबों और निम्न जाति वालों का गला ऐसी क्रूरता से घोंटता हो। प्रभु ने मुझे दिखा दिया कि इसमें धर्म का कोई दोष नही है, वरन दोष उनका है, जो ढ़ांेगी और दम्भी हैं जो ‘पारमार्थिक’ और ‘व्यावहारिक’ सिðान्तों के रूप में अनेक प्रकार के अत्याचार के अस्त्र निर्माण करते हैं।’’

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Pages:76-78
सुनीता देवी (सहायक प्राध्यापिका, छाज्जु राम जाट काॅलेज, हिसार)