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स्वातंत्रोत्तर हिन्दी कहानी के परिपे्रक्ष्य में सचेतन कहानी आन्दोलन

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Pages:140-141
प्रवीन कुमारी (CMJ University, Shillong, Meghalaya)

साठोत्तरी कहानी में ‘सचेतन कहानी’ कहानी आन्दोलन अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है। सचेतन कहानी का आन्दोलन वस्तुतः ‘नई कहानी’ की प्रतिक््िरफया में प्रारंभ हुआ। नई कहानी ने मूल्यों की जिस अस्थिरता के बीच अपनी जीवन दृष्टि प्राप्त करनी चाही है, उनकी विश्रृंखलता, अव्यवस्था और भी बढ़ गई और मात्रा व्यक्ति की प्रमुखता के साथ स्थापित मानदंड भी डगमगाने लगे और ‘‘जिस सामाजिक बोध को लेकर नई कहानी का आन्दोलन सन् 1950 के आस-पास कहानी में उभरा था, वह सन् 1960 तक पहुँचकर वैयक्तिक कुंठा, संत्रास आदि के इर्द-गिर्द ही घूम-फिरकर रह गया और उसमें एक खास किस्म का ‘मैनेरिज्म’ पैदा हो गया।’’ कहानीकारों ने पाश्चात्य दृष्टिकोण की आधुनिकता का पर्याय है। व्यक्तिवादिता और रूग्ण मानसिकता की इन्हीं प्रवृत्तियों के विरू ( अत्यन्त स्वाभाविक प्रतिक्रिया के रूप में ही सचेतन कहानी का जन्म हुआ। ‘सचेतन कहानी’ को ‘नई कहानी’ में अन्तव्र्याप्त ‘अकहानीत्व’ का विरोध्ी माना गया है, परन्तु जब तक ‘अकहानी आन्दोलन’ स्थापित ही नहीं हुआ था, इसलिए इसके विरोध का लक्ष्य ‘नई कहानी’ को ही माना गया है।

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Pages:140-141
प्रवीन कुमारी (CMJ University, Shillong, Meghalaya)