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शिक्षा के क्षेत्र में योग का महत्व

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Pages: 374-377
कुमारी आरती (मनोविज्ञान विभाग, टी.एन.बी. महाविद्यालय, भागलपुर, बिहार)

शिक्षा का आशय मानव के सर्वांगीण विकास से है। शिक्षा वास्तव में परिवर्तन का मुख्य साधन है जिसके द्वारा
मनुष्य के जन्मजात शक्तियों ज्ञान एवं कौशलों का विकास होता है। शिक्षा व्यक्ति ही नहीं राष्ट्र के विकास में भी
अहम भूमिका निभाती है जिसे योग जैसे प्राचीन कला के माध्यम से और भी संवारा जा सकता है। योग एक ऐसा
उपकरण का काम करता है जो व्यक्ति में सकारात्मक विचारों एवं व्यवहारों के रूप में परिणत होता है। योगाभ्यास
का विशेष महत्व जीवन के प्रारंभिक काल से ही स्पष्ट दिखने लगता है। बाल्यकाल या विद्यालय काल से ही योग
की शिक्षा या योगाभ्यास बच्चों में अनुशासन एवं आत्म नियंत्रण जैसे सद्गुणों का विकास करती है जो पूर्ण जीवन
काल में उनके लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त करने में गति प्रदान करती है। आधुनिक युग में बढ़ते हुए
प्रतियोगिता तथा भागदौड़ की जिंदगी तनाव का रूप लेता जा रहा है जिससे हमारे बच्चे भी अछूते नहीं है। बाल
मनोविज्ञान में इसी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए बढ़ते हुए शैक्षणिक क्रियाकलापों के दबाव को कम करने के
लिए नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली शिक्षा में योग का समावेश किया है। सरकार का यह उत्ष्ट प्रयास बच्चों को
कच्ची मिट्टी मानकर उसे सकारात्मक गुणों से सवारने की तैयारी है ताकि राष्ट्र के लिए सभ्य, सुसंस्त एवं योग्य
नागरिक तैयार किए जा सके। पतंजलि योग में कहा गया है “चित्तवृत्तिनिरोध” अर्थात योग ही मात्र एक ऐसा
साधन है जिसमें चित्त शुद्ध किया जा सकता है। योग लिंग भेद,धर्म भेद से मुक्त होने के कारण सभी के लिए और
हर क्षेत्र में लाभदायक है। योगः कर्मशु कौशलम अर्थात योग के माध्यम से कर्म में दक्षता प्राप्त किया जा सकता है।
योग विशेषकर हठयोग जिसमें शारीरिक एवं श्वसन क्रियाओं पर विशेष अभ्यास कराया जाता है, का सापेक्ष प्रभाव
देखा गया है। सिस्टम ऑफ एक्सेलेरेटेड लर्निंग एंड ट्रेनिंग (ै।स्ज्) ने शिक्षा और योग का समायोजन करते हुए
स्कूली बच्चों पर अध्ययन किया और पाया कि योगाभ्यास से प्रारंभ किया गया शिक्षा बच्चों पर विशेष प्रभावकारी
रही जिसमें बच्चों में ग्रहणशीलता, रचनात्मकता, इच्छाशक्ति, स्मृति आदि में काफी सुधार हुआ उनका ध्यान केंद्रित
तथा स्वभाव में निश्चलता एवं शांति की झलक मिली। वह अपने तथा समाज के प्रति जागरूक दिखे उनमें
आत्मविश्वास आत्मसम्मान जैसे गुणों का विकास हुआ। इस तरह शिक्षा के क्षेत्र में योग का मुख्य उद्देश्य मानव के
विकास एवं संतुलन से है जो व्यक्तित्व विकास एवं चरित्र निर्माण के साथ-साथ राष्ट्र विकास की अवधारणा की
भी संपुष्टि करती है।

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Pages: 374-377
कुमारी आरती (मनोविज्ञान विभाग, टी.एन.बी. महाविद्यालय, भागलपुर, बिहार)