विष्णु प्रभाकर के उपन्यास निशिकान्त’’ में ‘नायिका’ परिकल्पना एवं पात्रगत समीक्षा
Pages:235-238
Kusum Saini (Research Scholar, Department of Hindi, Sai Nath University, Ranchi)
आधुनिक काल में भारतीय नारियों ने जितनी प्रगति की है, अपने सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों के लिए उन्होंने जो महान संघर्ष किया है, वह मानवीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। वास्तव में नारियों से ही मानव जीवन की पूर्णता सिद्ध होती है। बिना नारी के पुरुष अधूरा है, उसका जीवन अपूर्ण है। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जब हिन्दी उपन्यास साहित्य का आविर्भाव हुआ तब भारत में नारियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और पाश्चात्य देशों की नारियों की अपेक्षा वे अत्यधिक पिछड़ी हुई थीं। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के साथ ही धीरे धीरे भारतवासियों में नवीन चेतना का उदय हुआ, पुनरुत्थान की भावना का जन्म हुआ और नारियों की शोचनीय स्थिति की ओर लोगों का ध्यान जाने लगा। नारी स्वयं ही अपनी हीनावस्था और अपने अधिकारों के प्रति सजग होने लगीं। उपन्यासकार इस स्थिति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाये और उन्होंने नारियों की स्थिति का चित्रण कर, उनके सुधार की दिशा में उपन्यासों के माध्यम से कार्य करना प्रारंभ किया। इस प्रकार के नारी प्रधान उपन्यास लिखने वाले उपन्यासकारों में विष्णु प्रभाकर जी अग्रगण्य हैं।
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Pages:235-238
Kusum Saini (Research Scholar, Department of Hindi, Sai Nath University, Ranchi)