
विजय तेंदुलकर के नाटकों में नारी और उससे सम्बन्धित समस्याओं का चित्रण
Pages:36-41
रीना शर्मा (हिन्दी विभाग, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक)
संसार का चाहे कोई भी समाज हो, सर्वत्र नारी का स्थान महत्त्वपूर्ण माना गया है। यह बात अलग है कि संसार के हर समाज में नारी प्रायः हर युग में दमित, शोषित और उपेक्षित भी रही है तो समय-समय पर कुछ नारियों ने अपने चरित्र तथा पौरुष द्वारा समाज में एक नई क्रांति उत्पन्न की है। सामाजिक संरचना में परिवाररूपी संस्था का अपना महत्त्व है, जिसकी परिकल्पना विवाह के बिना नहीं की जा सकती और विवाह जो नर-नारी के गठबंधन से सम्पन्न होता है, नारी के अभाव में संभव नहीं है। अतः सामाजिक दृष्टि से नारी का महत्त्व स्वयं सिद्ध है। किसी भी समाज की श्रेष्ठता या अश्रेष्ठता उस समाज में नारी की स्थिति पर निर्भर करती हैं वस्तुतः नारी ही समाज की उन्नति-अवनति की द्योतक है। यही कारण है कि गाँधी जी जैसे युग पुरुष ने भी उसके महत्त्व को समझा और समाज में इस उपेक्षित वर्ग को समानाधिकार एवं सम्मान दिलाने का स्तुत्य प्रयास किया। उनका कहना था-”नारी को अबला कहना, उसके प्रति, यह पुरुष का अन्याय है। यदि अंहिसा हमारे मूल्यांकन की कसौटी है तो निश्चय ही भविष्य का निर्माण स्त्रियों के हाथ में है।“1
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Pages:36-41
रीना शर्मा (हिन्दी विभाग, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक)