लोकसंगीत एवं उपशास्त्रीय संगीत का पारस्परिक संबंध: एक अध्ययन
Pages: 517-519
सादिका (संगीत विभाग शोधार्थी, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा)
संगीत का मानव जीवन में विशेष महत्व है। लोकसंगीत तथा उपशास्त्रीय संगीत, संगीत की महत्वपूर्ण विधाएं हैं। लोकसंगीत में शास्त्रीय नियमों का कोई बंधन नहीं होता है जबकि उपशास्त्रीय संगीत में शास्त्रीय नियमों का पालन किया जाता है और नियमों को छोड़ने की भी स्वतंत्रता है। दोनों संगीत का उद्देश्य लोकरंजन है। दोनों के विषय श्रृंगारिक एवं आध्यात्मिक होते है। दोनों ही संगीत भाव प्रधान है। दोनों का उद्देश्य मनुष्य के हृदय के भावों की अभिव्यक्ति करना होता है। इस प्रकार लोकसंगीत और उपशास्त्रीय संगीत का घनिष्ठ सम्बंध है। उपशास्त्रीय संगीत लोकसंगीत तथा शास्त्रीय संगीत के बीच की गायन विधा है। वास्तव में उपशास्त्रीय संगीत की अधिकांश गायन शैलियों का जन्म लोकसंगीत से ही हुआ है। दोनों की अधिकांश विधाओं का मुख्य विषय प्रेम और श्रृंगार है। दोनों ही संगीत में ग्रामीण जीवन और वातावरण की झलक मिलती है। उपशास्त्रीय संगीत की विधाओं के साथ उन्हीं रागों का प्रयोग किया जाता है जो वास्तव में लोकधुनों से विकसित हुए है। उपशास्त्रीय संगीत की विधाओं के साथ उन्हीं तालों का प्रयोग किया जाता है जो लोकसंगीत की ही ताले मानी जाती है। इस प्रकार संगीत की दोनों ही विधाएं एक-दूसरे से भिन्न होकर भी एक-दूसरे से संबधित है।
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सादिका (संगीत विभाग शोधार्थी, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा)