लोकजीवन में प्रकृति एवं पर्यावरण
Original price was: ₹ 202.00.₹ 200.00Current price is: ₹ 200.00.
Pages:199-201
Suman (Department of Hindi, Govt. College for Women, Hisar, Haryana)
लोकजीवन का स्वरुप. मानव जीवन के दो चरण हैं – लोकजीवन तथा शिश्टजीवन। मशीनी सभ्यता के विकास के साथ मानव प्रकृति के सुरम्य, इन्द्रधनुशी एवं स्वाभाविक वातावरण को छोड़कर कृत्रिमता की ओर अग्रसर हुआ है। इसीलिए आज के जीवन को मानव पर स्वतः आरोपित जीवन कहा गया है। आज मनुष्य का जीवन एकदम एकरुप तथा अत्याधिक स्वाभाविक एवं स्वतन्त्र हो गया है। ’’जो कुछ हमने सोचा, किया और सहा उसका प्रकट रुप हमारा जीवन है। लोकराष्ट्र की अमूल्य निधि है। हमारे इतिहास में जो भी सुंदर तेजस्वी तत्व है, वह ’लोक में कहीं न कहीं सुरक्षित है। हमारी कृषि, अर्थशास्त्र ज्ञान, साहित्य, कला के नाना रूप भाषाएँ और शब्दों के भण्डार, जीवन के आनन्दपर्वोत्सव नृत्य, संगीत, कथा, वार्ताएँ, आचार-विचार – सभी कुछ भारतीय लोक में ओत-प्रोत हैं।40 लोक जीवन सुदीर्घ परम्परागत पैतृक उत्तराधिकार में प्राप्त वह पारम्परिक जीवन है जो निसर्ग सौन्दर्य, माधुर्य, सारल्य, त्याग आध्यात्मक, स्वाभाविकता आदि अलंकारों से सुशोभित है। इसमें किसी प्रकार का बाह्य प्रदर्शन नहीं है। निरन्तर प्रवाहमान एवं गतिशील लोक जीवन में श्रद्धा और विश्वास भी भावना ’लोक के उत्सवों, अनुष्ठानों तथा उसके विविध कार्य-कलापों में स्पष्ट परिलक्षित होती है।
Description
Pages:199-201
Suman (Department of Hindi, Govt. College for Women, Hisar, Haryana)