महीप सिंह की कहानियों में मानवीय संबंधों का स्वरूप
Pages:158-160
प्रवीन कुमारी (CMJ University, Shillong, Meghalaya)
मानवीय संबंधें का स्वरूपः सामान्य परिचयः- कहानीकार एक सामाकि प्राणी होने के कारण मनुष्यों के बीच रहकर ही किसी कृति की रचना करता है। कहानीकार अपने युगीन परिवेश के प्रति प्रतिब ( रहता है, यह उस प्रतिबद्धता के प्रति लेखक की इमानदारी मानी जाती है कि उसके कथ्य का मूल विषय मानवीय संबंध है। लेखक समाज का एक अभिन्न अंग होने के कारण अपने आसपास के परिवेश को अति सूक्ष्मता से देख-परख कर ही उसे साहित्य में परिलक्षित करता है। लेखक का मानववादी होना स्वाभाविक है। इस संबंध में डाॅ. हेतु भारद्वाज का मानना है कि, ‘‘देशकाल मानव संस्कृति के निर्धरक तत्व है और संस्कृति के साथ मनुष्य का युक्तिसंगत रिश्ता होता है तथा व्यक्तिगत रूप से मानव अपने चारों ओर से संसार, समाज, क्रियाशीलता तथा संगठनों से अपना संबंध स्थापित कर उनका अंग बन जाता है।’’ इस प्रकार मानव में परस्पर संबंध स्थापित होने शुरू हो जाते है।
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Pages:158-160
प्रवीन कुमारी (CMJ University, Shillong, Meghalaya)