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महादेवी वर्मा के काव्य में विरह का चित्रण
Pages:66-68
सोनू (हिन्दी विभाग, चै. बंसीलाल महाविद्यालय, लोहारू, भिवानी, हरियाणा)
हिन्दी साहित्य के विस्तृत काव्य विस्तार में कवियों और महाकवियों की मनोभूमि पर विरह भावों की सृष्टि का अति गहन और अन्यतम भाव रूपाकार विद्यमान है। विरह काव्य अपने आदि रूप से आधुनिक रूप तक काव्य का तीव्रतम अनुभूति पक्ष बना हुआ है। हिन्दी साहित्य में विरह की विविध अभिव्यंजनाओं से सम्पृृक्त कला दृष्टि, साहित्य जगत् का सर्वश्रेष्ठ और अप्रतिम काव्य सौष्ठव है। प्राचीन कालीन काव्य धारा से सतत् उद्दीप्त भाव ‘विरह’ आधुनिक भाव बोध की उच्च पीठिका तक अपने विशद रूप में विवेचन और विश्लेषण की पर्याप्त शोध दृष्टि पदान करता है। सूरदास, जायसी, मीरा और घनानन्द की अद्भुत विरह अभिव्यक्ति ने काव्य कला को समृद्ध और संशिलष्ट बनाने में एक व्यापक पृष्ठभूमि का निर्माण किया। आधुनिक काव्य-दृष्टि की प्रसंग भूमि पर हरिऔध जी, मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा की बहुआयामी विरह सरणियाँ हिन्दी काव्य की एकनिष्ठ समर्पित भाव धारा को सहज और अग्रणी बना जाती हैं।
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Pages:66-68
सोनू (हिन्दी विभाग, चै. बंसीलाल महाविद्यालय, लोहारू, भिवानी, हरियाणा)