निशांतकेतु की कहानियों में प्रकृति-चित्रण
Pages:186-187
Babita (CMJ University, Shillong, Meghalaya)
प्रकृति के साथ कला का अंतरंग सम्बंध जगजाहिर है। प्रकृति से प्रभावित हुए बिना कोई भी संवेदनशील कलाकार अपनी कला-कृति को उत्कृष्ट नहीं बना पाता। कलाकार प्रकृति का अनुकरण करता है। उसके सौंदर्य और प्रतिपल बदलते स्वरूप का सूक्ष्मातिसूक्ष्म निरीक्षण करता है और इस क्रम में उसके मन को प्रकृति का जो दृश्य विमाहित करता है उसे वह अपनी कलाकृतियों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की कोशिश करता है। इसलिए कला के समस्त प्रकारों में प्रकृति के विविध रंगों की चटक, मनोहारी दृश्यों की छाप और प्रभाव घुले-मिले हैं। आचार्य जी की कथा-कृतियों में प्रकृति के विविध दृश्यों के रूपांकण का मूल स्रोत उनका गाँव और आवासीय परिसर भी है। आचार्य जी को प्रकृति से बेहद लगाव तो है ही, उसकी श्रीवृद्धि के लिए अनुकूल स्थितियों में वे खुद वृक्षारोपण का प्रयत्न भी करते रहे हैं। वे जहाँ भी रहे, इसके लिए सतत प्रयत्नशील रहे। उर्वर भूमि की उपलब्धता नहीं रहने पर भी बंजर को हरा-भरा उपवन का रूप देने में उनकी सफलता निर्विवाद रही है। इसलिए उनका अधिवास गाँव रहा हो या प्रवास शहर रहा हो, वे प्रकृति के बीच साँस लेने में ही शुकून महसूस करते हैं। प्रकृति उनका प्राण है, वे उसके सच्चे गुणग्राहक रहे हैं, इसलिए उनकी कहानियों में प्रकृति की उपस्थिति देह में प्राण की तरह है।
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Pages:186-187
Babita (CMJ University, Shillong, Meghalaya)