धर्मवीर भारती के काव्य में अनुभूति

Pages:83-87
Mamta Rani (Singhania University, JhunJhunu)

अनुभूति और अभिव्यक्तिः सैद्धान्तिक विवेचन कविता के दो तत्व माने गए हैं – अनुभूति और अभिव्यक्ति। इन दोनों के संतुलित संयम से ही कविता का स्वरूप निर्मित होता है, कविता की संरचना सम्भव होती है। इस अध्याय के अन्तर्गत हम अनुभूति और अभिव्यक्ति के सैद्वानितक पक्ष का वर्णन करेंगे। सर्व प्रथम हम अनुभूति के अर्थ, परिभाशा व स्वरूप पर प्रकाश डालते हैं। (क) अनुभूतिः अर्थ, परिभाशा और स्वरूपः कविता के संदर्भ में संवेदना, भाव, भावना आदि शब्दों का प्रयोग प्रचुरता से किया जाता है ‘संवेदना‘ में ‘विद्‘ धातु है जिसका अर्थ है ‘बोध या प्रतीति या अनुभव‘। इसी प्रकार भाव, भावना,, अनुभव, अनुभूति, शब्द भू धातु से निर्मित है, जिसका अर्थ है ‘होना‘। प्रत्यक्ष बोध से मन मंे दुःख-सुख का प्रतीत होना ही इन सब शब्दों के अर्थों में सर्वसामान्य तत्त्व है। यदि बारीकी से होना ही इन सब शब्दों के अर्थों में सर्वसामान्य तत्व है। यदि बारीकी से विचार किया जाए और इन शब्दों के सूक्ष्म अन्तरों पर विशेश ध्यान दिया जाए ज्ञात होता है कि संवेदन में प्रत्यक्ष ऐन्द्रिय प्रतीति की तीव्रता तात्कालिकता की सीमा में निबद्वहैं इसकी अपेक्षा संवेदना अधिक व्यापक है। भाव और भावना अधिक गम्भीर शब्द है। इनमें ऐन्द्रिय संवेदना अधिक व्यापक है। भाव और भावना अधिक गम्भीर शब्द हैं। इनमें ऐन्द्रिय बोध के साथ ही विचार या चिन्तन का तत्त्व भी समाहित रहता है। प्रेम का भाव और देश-भक्ति की भावना कहने में अनुराग केवल तात्कालिक ऐन्द्रिय बोध तक सीमित नहीं है, वरन् इसके मूल में प्रेम-पात्र और देश के प्रति प्रेमी व्यक्ति और देश भक्त के मन में एक सुचिन्तित सकारण आकर्शण सकारण आकर्शण और आत्मीयता की प्रेरणा निहित रहती है। अनुभूति में ऐन्द्रिय बोध की तीव्रता के साथ ही विचार की मात्रा भी समुचित अनुपात में रहती है। अनुभूति की अपेक्षा अनुभव अधिक अर्मूत है। समान प्रकार की अनुभूतियों की श्रंृखला में से गुजर कर ही एक प्रौढ़ अनुभव प्राप्त होता है।

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Mamta Rani (Singhania University, JhunJhunu)