देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता, अभाव तथा सुधार सबंधी प्रयास

Pages:38-40
वंदना शर्मा (सहायक प्राध्यापक (हिन्दी) दिशा काॅलेज, रायपुर, छत्तीसगढ.)

देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कुछ विदेशी भाषाएँ लिखी जाती है। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिंधी, कश्मीरी, ड़ोगरी, नेपाली, गढ़वाली, बोड़ो, अंगिला, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती है। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, मणिपुरी, रोमानी और ऊर्दू भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती है। अधिकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है। इसे शिरोरेखा कहते है। इसका विकास ब्राही लिपि से हुआ है। यह एक छन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों; रोमन, अरबी, चीनी आदि में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती है जैसे बंगला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है। भारतीय भाषाओं की किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग हू-ब-हू उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नही है, जब तक कि उनका कोई खास मानकीकरण न किया जाये । इसमें कुल 52 अक्षर है जिसमें 14 स्वर और 38 व्यंजन है। अक्षरों की क्रम व्यवस्था भी बहुत ही वैज्ञानिक है। भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग है पर उच्चारण तथा वर्ण क्रम आदि देवनागरी के ही समान है क्योंकि वो सभी ब्राही लिपि से उत्पन्न हुई है। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौदर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठय है।

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Pages:38-40
वंदना शर्मा (सहायक प्राध्यापक (हिन्दी) दिशा काॅलेज, रायपुर, छत्तीसगढ.)