डा0 सूर्यनारायण द्विवेदी के उपन्यासों में पौराणिकता

Pages:82-84
सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, पटेल नगर, हिसार, हरियाणा)

‘पुराण का शाब्दिक अर्थ पुरातन, प्राचीन, प्राचीनकाल की कोई घटना, अतीतकाल की कथा, धार्मिक अख्यान हेता है।’ डा0 सूर्यनारायण जी के उपन्यासों का आधार पौराणिक है। पात्र वैदिककालिन भी ठीक वैसा ही है। अलौकिक घटनाओं का वर्णन है। ऋशि-मुनी, आश्रम, देवी-देवताओं से सम्बधित घटना क्रम है। उनके पौराणिक चरित्र आज के युग में भी अनुकरणीय है। ‘आत्रेयी अपाला’ उपन्यास की अपाला ‘आशाशिशु’का अंशुल, उपयमा आदि इस दिशा में वैदिक भाव में उदाहरणीय चरित्र है। ‘आशाशिशु’ में देवर्शि नारद भारतवर्श के पौराणिक काल का प्रख्यात चरित्र है। कहीं-कहीं इन्हें भगवद् अवतारों में भी गिना जाता है। इनका चरित्र प्रायः एक मनोरंजक पात्र के रुप में लोक के सामने आया है। इनका महत्वपूर्ण योगदान भक्तों के लिए स्वीकार किया गया है। एक सम्पूर्ण पुराण ही नारदपुराण, उनके महत्व पर रचा गया है। इस उपन्यास का आधार भी ‘नारदपुराण’ एंव ‘श्रीमद्भागवत् गीता’ रहे है। देवर्शि नारद के उन्ही के अनुसार तीन जन्म हुए। पहले जन्म में वे अपवर्हण नाम के गन्धर्व थे। तीसरे जन्म में वे साक्षात् ब्रह्य के पुत्र हुए। यह उपन्यास उनके द्वितीय जन्म पर आधारित है। इस उपन्यास में श्रीमद्भागवत् गीता से कई श्लोक लिए गए हंै। लेखक ने कहानी आरम्भ करने से पूर्ण तथा कथा शुरु होने से पहले व बाद में संस्कृत के शलोक दिए हैं।

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सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, पटेल नगर, हिसार, हरियाणा)