डा0 सूर्यनारायण द्विवेदी का उपन्यास ‘आशाशिशु’ में नारी चित्रण
Pages:34-36
Saroj Bala (Sai Nath University, Ranchi)
डा0 सूर्यनारायण द्विवेदी द्वारा रचित उपन्यास सहित्य में ‘आशाशिशु’ का प्रमुख स्थान है। इस उपन्यास का प्रकाशन 1999 में वाराणसी में श्री श्री राधा प्रकाशन संस्थान से हुआ था। आलोच्य उपन्यास में नारी का चित्रण विभिन्न रूपों में हुआ है। इस उपन्यास का प्रमुख कथानक देवर्शि नारद के द्वितीय जन्म पर आधारित है। ‘आशाशिशु’ उपन्यास में नारद (अंशुल) की माता उपयमा व मौसी चीमा का नारी चित्रण प्रमुख रूप से हुआ है। तिलोतमा, उर्वसी मेनका आदि स्वर्ग अपसराओं की सुन्दरता का वर्णन भी यन्त्र-तन्त्र हुआ है। उपन्यास के तत्वो में चरित्र-चित्रण का स्र्वाधिक महत्व है। यदि कथानक उपन्यास का मेरूदंड है तो चरित्र-चित्रण उसका प्राण है। पात्र सामान्यतः मनुश्य ही होते है। उपन्यासकार स्वंय भी मनुश्य ही होता है इस कारण उसमें और उसके पात्रों में अद्भुत साम्य होता है। उपन्यास का कोई पात्र तभी यथार्थ जगत् का पात्र प्रतीत हो सकता है जबकि वह उन नियमों और सिद्वंातों के अनुसार जीता है उपन्यास का कोई पात्र तभी वास्तविक प्रतीत होगा, जबकि उपन्यासकार उसके सम्बंध में सब कुछ जानता होगा। श्उपन्यासकार अपनी रचना में पात्रों की खोज करता है, वह उनका निर्माण नहीं करता। जीवन और जगत् के प्रति उसका जैसा दृश्टिकोण होता है और जीवन और जगत् की उसकी जैसी अनुभूति होती है, उसके पात्र उसी के आधार पर रूप पाते है। उपन्यासकार को यह बात सदैव ध्यान में रखनी चहिए कि वह चाहे जिस प्रकार के पात्र प्रस्तुत करे, किन्तु सजीव बनाए रखने का प्रयत्न करे, जिससे ऐसा न प्रतीत हो कि कोई पात्र-विशेश जीवन और जगत के यर्थाथ से भिन्न है।‘(1) Purchase PDF
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Saroj Bala (Sai Nath University, Ranchi)