डा. सूर्यनारायण द्विवेदी के उपन्यासों में वन्य जीवन की संस्कृति

Pages:181-183
सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, पटेल नगर, हिसार, हरियाणा)

वन्य संस्कृत भाषा का शब्द है। वन्य का मतलब है वन में उत्पन्न होने वाला , अर्थात् कोई जंगली जैसे- वन्य पशु या मानव।1 ज्ंागली भूमि पर जन्म लेने व पलने वाला जीवन वन्य जीवन कहलाता है। उसको संस्कृत रुप देने की क्रिया अथवा संस्कार या आचरणगत परम्परा ही संस्कृति है। इस प्रकार वन्य जीवन की संस्कृति का अर्थ है वनवासियों की आचरणगत पंरम्परा। वन मे रहने वाले लोगों के रीति रिवाज, उत्सव, सहयोग की भावना, रहन-सहन, खान-पान, वस्त्राभूशण, घर वातावरण आदि के वर्णन द्वारा वन्य जीवन की स्ंास्कृति का पता चलता है। डा. सूर्य नारायण द्विवेदी के उपन्यासों ’आशाशिशु’ व ’अत्रेयी अपाला’ में वन्य जीवन की संस्कृति का बडा सुन्दर वर्णन किया गया है। ’आशाशिशु’ उपन्यास में लेखक ने वनवासियों के जीवन का चित्रण किया है। उपन्यास को पढते ही पाठक के सामने सम्पूर्ण आदिवासियों की दिनचर्या घूम जाती है। इस उपन्यास में उपयमा नामक एक नवयोवना एकान्त में झोपडी बनाकर रहती है। उसकी दिनचर्या का वर्णन लेखक ने किया है। जैसे ’उपयमा’ की फूंस की बनी झोपडी को कोमल एंव हरे पेड-पौधों ने ढक रखा था, इसके भीतर कुछ मिटटी

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सरोज बाला (गवर्नमेंट सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, पटेल नगर, हिसार, हरियाणा)