डाॅ॰ सूर्यनारायण द्विवेदी के उपन्यासों में पतिव्रता स्त्रियों की व्यथा
Pages:224-226
सरोज बाला (हिन्दी विभाग, सांईनाथ विश्वविद्यालय, रांची।)
डाॅ॰ सूर्यनारायण द्विवेदी के उपन्यास-आशाशिशु व आत्रेयी अपाला में वैदिक कालीन नारी-चित्रण किया गया है। पतिव्रता स्त्री की कथा का वर्णन किया गया है। वैदिक काल में नारियों को सम्मान प्राप्त था। इस पर गजानन शर्मा जी लिखते है- वैदिक युग में पत्नी को बहुत आदर प्राप्त था। वे आर्य पत्नी को ही घर मानते थे-पत्नी ही घर है उनके गृहस्थ धर्म का आशय था-नारी के साथ रहकर धर्माश्ठान और यज्ञ सम्पादन करना। बिना नारी के गृह का अस्तित्व कंहा है, और गृह के अभाव में गृहस्थ-धर्म का सम्पादन हो तो कैसे! इस विचारधारा में गृहिणी गृहस्थ धर्म की प्रतिष्ठा का एक मात्र सहायक आधार थी। पति-पत्नी दोंनों मिलकर यज्ञ करते थे। यही नहीं स्त्रियां पृथक रूप से भी यज्ञ करती थी।1
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Pages:224-226
सरोज बाला (हिन्दी विभाग, सांईनाथ विश्वविद्यालय, रांची।)