ठुमरी गायकी में श्रृंगारिक तत्त्वों का विश्लेषणात्मक अध्ययन
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Pages: 1673-1675
सादिका (संगीत विभाग, राजकीय स्नातकोत्तर महिला महाविधालय, रोहतक)
भारतीय संगीत की गायन शैलियों में ठुमरी गायकी का एक विशेष स्थान है। यह गायकी मुख्यतः श्रृंगार रस से ओत-प्रोत है क्योंकि इस गायकी में श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है। इसलिए इस गायकी के विषय वर्णन में राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंग, नायक-नायिका के प्रेम-प्रसंग, विरह में नायिका की मनोदशा आदि श्रृंगार प्रधान प्रसंगों का वर्णन मिलता है। ठुमरी गायकी के काव्य में मुख्यतः ब्रज, खड़ी बोली, भोजपुरी, अवधी व राजस्थानी आदि भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। ठुमरी गायकी में प्रयुक्त शब्द रचना अत्यंत सरल तथा कम शब्दों वाली रहती है। इसमें शब्दों के ध्वनिरूप को लचीला रखा जाता है क्योंकि लचीली शब्द रचना से जो भाव व्यक्त होते है वे बहुत व्यापक ढंग के होेते है। इस गायकी में स्वर और शब्द एक-दूसरे के पूरक है। इसमें एक ही शब्द को कई प्रकार के स्वरों में प्रयोग किया जाता है। अर्थात् भाव प्रदर्शनकरने हेतु स्वरों को विभिन्न प्रकार के घुमाव-फिराव के साथ प्रयोग किया जाता है। इसमें स्वरों के द्वारा शब्द-सौन्दर्य तथा शब्दों के द्वारा स्वर-सौन्दर्य दोनों ही आते है। अर्थात इसमें स्वर-विस्तार और बोल-विस्तार साथ ही साथ चलते है। यह गायकी पूर्ण रूप से रोमांचकारी है परन्तु पूर्ण रूप से अनुशासित नहीं है। व्यावहारिक रूप से इसमें कल्पना को पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त है। ठुमरी गायकी में प्रायः लोकधुनों से नाता रखने वाली नाजुक प्रकृति की राग-रागनियों का प्रयोग अधिक होता है। इस गायकी को केवल उन्हीं रागों में गाया जाता है जो राग चंचल प्रकृति के होते है। ठुमरी में छोटे आलापों, तानों, बोलतानों, मुर्की, खटका, कण, मींड आदि का प्रयोग किया जाता है तथा भावों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए ध्वनि में उतार-चढ़ाव अधिक किया जाता है। इस गायकी में कुछ सीमित तालों का प्रयोग किया जाता है। ठुमरी गीत रचना में निहित बोलों की गयात्मकता और भावाभिव्यंजनात्मक गुणों के आधार पर कालांतर में इसके दो प्रमुख भेद हो गये है जिन्हें क्रमशः बोलबांट की ठुमरी और बोल बनाव की ठुमरी कहा जाता है। ठुमरी गायकी के अंगों का विस्तारपूर्वक विश्लेषण करने के पश्चात यह स्पष्ट होता है कि यह गायकी पूर्ण रूप से श्रृंगार रस से ओत-प्रोत है ओर यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो यह बात स्पष्ट होती है कि ‘ठुमरी गायकी’ में सभी हिन्दुस्तानी शैलियों की मुख्य विशेषताएं पाई जाती है।
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Pages: 1673-1675
सादिका (संगीत विभाग, राजकीय स्नातकोत्तर महिला महाविधालय, रोहतक)