जापान में विवासित स्वतन्त्रता सेनानियों का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
Pages: 193-196
सुरेश कुमार (एम.ए., इतिहास, NET, हरियाणा)
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जापान भारतीय क्रांतिकारियों का शरणस्थली बन चुका था, रासबिहारी बोस ने अपने अथक प्रयासों से अब तक जापानी विदेश नीति के हाशिये पर चल रहे भारत व भारत के हितों को इसके केंद्र में लाने में सहायता की। ब्रिटेन के मलय अभियान के दौरान बड़ी संख्या में भारतीय जवान मलय प्रायद्वीप व सिंगापुर में तैनात किए गए। सिंगापुर की लड़ाई में ब्रितानी सेना की पराजय के उपरांत भारी संख्या में सैन्य आत्मसमर्पण हुआ, लगभग 45000 भारतीय जवान जापान के युद्धबंदी हो गए। ज्ञानी प्रीतम सिंह और जापानी खुफिया अधिकारी फुजीवारा ने पंजाब रेजीमेंट के कप्तान मोहन सिंह को मित्रवत् व्यवहार करने का वचन दिया और उन्हें देश की स्वतंत्रता हेतु कार्य करने के लिए मना लिया। मोहन सिंह की अगुआई में प्रथम आजाद हिन्द सेना का गठन किया गया जो आगे चलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारत की आजादी के लिए लड़ी। जापान प्रारम्भ से ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का समर्थक रहा है और इस देश ने भारतीय क्रांतिकारियों को हर संभव सहायता प्रदान करने का प्रयत्न किया है। जापान की भूमि से हमारे क्रांतिकारियों ने देश की महती सेवा की है।
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सुरेश कुमार (एम.ए., इतिहास, NET, हरियाणा)